सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आधार नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन पर सुनवाई के दौरान भारतीय चुनाव आयोग के इस रुख का समर्थन किया कि आधार को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि इसका स्वतंत्र रूप से सत्यापन होना चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि यह मामला भरोसे की कमी से जुड़ा है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि अगर 7.9 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने एसआईआर का जवाब दिया है, तो ‘1 करोड़ नाम गायब’ होने का तर्क कैसे टिकता है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि बिहार की मतदाता सूची में 12 जीवित लोगों को मृतक बताया गया है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि लोगों के पास आधार, राशन कार्ड और ईपीआईसी कार्ड होते हुए भी इन्हें मान्य नहीं माना जा रहा।
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि ड्राफ्ट सूची में कुछ गड़बड़ियां स्वाभाविक हैं, जिन्हें अंतिम सूची में ठीक कर लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि 7.9 करोड़ मतदाताओं में से लगभग 6.5 करोड़ को कोई दस्तावेज देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, क्योंकि वे या उनके माता-पिता पहले से 2003 की मतदाता सूची में दर्ज थे।
अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि बुधवार को होने वाली सुनवाई में वह पूरा डाटा तैयार रखे, जिसमें प्रक्रिया शुरू होने से पहले और अब तक के मतदाताओं की संख्या, मृतकों का आंकड़ा और अन्य विवरण शामिल हों। अदालत ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि अगर बड़े पैमाने पर नाम काटने की स्थिति बनी, तो वह तत्काल हस्तक्षेप करेगी
