चक्रधरपुर : झारखंड के पश्चिम सिंहभूम ज़िले में गुरुवार को आदिवासी संगठनों ने चक्रधरपुर रेल मंडल मुख्यालय के बाहर ज़ोरदार रैली निकाली. प्रदर्शनकारियों की मुख्य माँग थी कि रेलवे स्टेशन के नाम और उद्घोषणाएँ स्थानीय “हो” भाषा की वारांग क्षिति लिपि में की जाएँ, ताकि क्षेत्र के आदिवासी समाज को अपनी भाषा में जानकारी मिले और उनकी सांस्कृतिक पहचान को सम्मान मिल सके.
डीआरएम से मांग, स्टेशन का नाम हो भाषा में लिखें
सुबह से ही एनएच-75 मार्ग पर सैकड़ों आदिवासी पुरुष, महिलाएँ और युवा झंडा-बैनर लेकर एकत्र हुए. रैली का नेतृत्व आदिवासी साहित्यकार डोबरो बीरूउली और आदिवासी हो समाज महासभा के नेता पातर जोंको ने किया. स्टेशन का नाम हो भाषा में लिखना होगा और रेलवे की साजिश नहीं चलेगी” जैसे नारे गूंजते रहे. रैली शांतिपूर्वक चक्रधरपुर रेल मंडल मुख्यालय तक पहुँची, जहाँ बढ़ती भीड़ को देखते हुए आरपीएफ ने सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए.
चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने मंडल रेल प्रबंधक तरुण हुरिया से मुलाक़ात कर मांग-पत्र सौंपा
इसमें आदिवासी बहुल सभी स्टेशनों के नाम हो भाषा में लिखने, ट्रेनों की घोषणाएँ और अन्य सूचनाएँ भी उसी भाषा में देने की मांग की गई. डोबरो बीरूउली ने बताया कि 2013 में घाघरा स्टेशन पर हो भाषा में नामपट लगाया गया था, पर बाद में “साजिशन” मिटा दिया गया, जिससे आदिवासी समाज बेहद आहत है.
डीआरएम ने प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया कि उनकी मांगों पर गंभीरता से कार्रवाई होगी. डोबरो बीरूउली ने कहा कि यह केवल सुविधा का नहीं, बल्कि अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव का प्रश्न है. पातर जोंको ने चेताया कि यदि माँगें जल्द पूरी नहीं हुईं तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा.
