किसी बड़े शायर ने लिखा था- बार-बार मेरी और निगाहें करके गुनाहां तो वह करते हैं परंतु जमाना सजा मुझे देता है,परेशान हूं मैं तुम्हारी इनायते नजरों के कारण हमारी “सरकार” चोट तुझे लगती है और जख्म में पाता हूं!जाने कहां चले आए हम लोग जहां पर हर काम अब हम सीधे चलते लोग उल्टा करने की परंपरा में सम्मिलित होते जा रहे हैं!यह क्या हो गया है हमें-की अब हम लोग ज्यादातर समाज सेवा या पशु सेवा या प्राकृतिक संरक्षण का काम उल्टा ही क्यों ? करते हैं!हम और हमारे पूर्वजों के द्वारा धर्म ज्ञान समाज की रक्षा और सहायता के उद्देश्य हेतु बनाए गए हमारे मजबूत संपन्न संगठन क्यों ? कर हर काम को उल्टा करते हैं,और सीधा दिखाते हैं!हाल फिलहाल में शहर के एक अवैध धन्ना सेठ ने जीवित पशुओं का हक खाने वालों के समक्ष समाज सेवा के नाम पर शहर में मृत पशुओं को उठाकर फेंकने के लिए लाखों रुपए की क्रेन दान में देने की बात कही और चमचे बेलचों से अपनी पीठ थपथपाते हुए अपनी नकली मूंछों को ऊंचाइयां प्रदान करने की झूठी कोशिश की!जहां कोई जरूरत नहीं है धन समाज का खर्च करने की-वहां हम-अपनी मूछें भड़काने के लिए 30 लाख की लिफ्ट लगाते हैं और जहां हमें शिक्षा के लिए, स्वास्थ्य सेवा के लिए जरूरतमंद परिवारों को उचित सहयोग देना चाहिए वहां हम मुकर जाते हैं!पता नहीं क्यों ? दोस्तों आज ज्यादातर सेवा काम में हम लोग उल्टे ही चलते नजर आते हैं!ऊंचे वं बलशाली दिखाने या होने के बाद भी जरूरत के वक्त जरूरतमंद परिवार और जरूरतमंद इंसान को हम कुछ लोग मूछ वाले होते हुए भी अपनी मुंह कटवा कर बिना मूछ के ही नजर आते हैं!जब अधर्मी की झूठी आन शान की बात आती है तो हम उल्टा काम करते हुए बड़े-बड़े आडंबर के साथ समाज के दान का संचित धन बेशर्म होकर खर्च करने लगते हैं!परंतु सच्चाई है मेरे दोस्तों-जहां मूछें चमकाने की जरूरत अपने लोगों के लिए-धर्म समाज भाईचारा के हितों के लिए होती है,व्यापारी समाज की सुरक्षा के लिए होती है,आवाम के अधिकार के लिए होती है,वहां हम कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के समर्थन में उन्हें माला पहनाते हुए मूंछ अपनी और हमारे मजबूत संगठन की मूछें नीची कर लेते हैं,या अपनी करनी से करा देते हैं!आज ज्यादातर संगठन के कुछ लोग या फिर व्यवसायिक समाज का प्रतिनिधित्व करते चंद लापरवाह इंसान व्यक्तिगत या पारिवारिक लाभ के चक्कर में तमाम मानव समाज एवं दानवीर लोगों की नजर को भी नीची करा देते है!पता नहीं दोस्तों कब से क्यों ?- क्यों ? कैसे-कैसे यह परंपरा चलती आ रही है कि एक अदने से कर्मचारी के सामने हम अपने ही हक और काम के अनदेखी करने के बाद भी गै-जिम्मेदार भ्रष्ट पदाधिकारी को अपने ही घर के चेंबर में “सलाम” बजाते दिखते हैं,यह सच है कि जवाबदेह-जिम्मेदार वफादार नेता का हमारे बीच नहीं होना उतनी तकलीफ नहीं देता है दोस्तों–जितनी तकलीफ आज हमारे नेता चाहे कैसे भी हो वह अपना और हमारा जमीर मारकर भ्रष्टाचार की “मांडीवली” का काम करके तकलीफ देते हैं!आज हमारे ऊपर यह कहावत सिद्ध होती है की धन जनता का मिर्जा खेले फूलों की होली!ऊंचाई पर बैठते ही कुछ लोग प्रतिशोध की अग्नि को अपने मन जला लेते हैं तब परिवर्तन की सोच बेहतर काम की सोच उस प्रतिशोध की अग्नि में जलकर खत्म हो जाती है,और ऐसे दृष्टांत के फल स्वरुप हम एक मजबूत वटवृक्ष प्रतिशोध की भावना में जलकर तिनके-तिनके से नजर आते हैं!पता नहीं क्या सोच होती जा रही है अब हमारी कि-अब हम पैसे वालों लोगों की दुनिया में-सीधे चलने के बजाय हर वक्त उल्टा ही चल जाते हैं!”भाई जान-जुम्मन मियां” यह पैसा भी अजीब हो गया है दुनिया में शायद जिसके पास पैसा नहीं है आज जमाने में उनकी इज्जत नहीं है,और जिसके पास अंकुर धन-संपत्ति पैसा किसी भी अवैध तरीके से हो गया है उसकी नजर में किसी गरीब की कोई बड़ी इज्जत नहीं!जबकि जमाने की हकीकत वाली धरातल पर गलत लोग और गलत पैसे के मालिकों की कहीं कोई इज्जत वास्तव में नहीं है! गरीबों की नजरों में जिनकी इज्जत बड़ी होती है सेठ साहूकार वही कहलाते हैं!मजबूत हो जाएगी दोस्तों हमारी भी जिंदगी गर हम दूसरों से उम्मीद कम करें वं दूसरों में ज्यादा कमी देखने के बजाय खुद की अपनी कमजोरियों पर ध्यान ज्यादा दें!खुद पर ज्यादा भरोसा करें तो आप वह सब कुछ कर सकते हैं जो ईश्वर रूपी लोग पूर्व में करके गए हैं!जिम्मेदारियां बार-बार इम्तिहान लेती है,अगर जिम्मेदारियां निभाने का कर्तव्य बोध इंसान के मन में सच्चा हो तो जिम्मेदारियां निभाने वाले की जिंदगी कष्टों में बीतने के बाद भी बड़ी महान होती है!
