नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ संशोधन कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, अदालत ने कानून में किए गए कई प्रावधानों के लागू होने पर अंतिम आदेश आने तक रोक लगा दी। इनमें वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और संपत्ति सत्यापन से जुड़े बदलाव शामिल हैं। सीजेआई बी.आर. गवई और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने स्पष्ट किया कि केंद्रीय वक्फ बोर्ड में अधिकतम 4 और राज्य वक्फ बोर्ड में अधिकतम 3 गैर-मुस्लिम सदस्य ही नियुक्त किए जा सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकारें जहां तक संभव हो, बोर्ड में सरकारी सदस्यों की नियुक्ति मुस्लिम समुदाय से करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला पांच याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुनाया। इन याचिकाओं पर अदालत ने 20 से 22 मई तक लगातार तीन दिन सुनवाई की थी और 22 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की संख्या तय करने के साथ ही सीईओ की नियुक्ति पर भी दिशा-निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि राज्य बोर्ड में सीईओ, जो पदेन सचिव भी होता है, संभव हो तो मुस्लिम समुदाय से ही नियुक्त किया जाए। वक्फ बनाने की शर्तों में बदलाव से संबंधित प्रावधान पर भी अदालत ने रोक लगाई। कानून के अनुसार, कोई व्यक्ति तभी वक्फ बना सकता था जब वह कम से कम पांच साल से मुसलमान हो। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक राज्य सरकारें यह तय करने का नियम नहीं बनातीं कि कोई व्यक्ति वास्तव में मुसलमान है या नहीं, तब तक यह प्रावधान लागू नहीं किया जा सकता। वक्फ संपत्तियों के वेरिफिकेशन से जुड़ी धारा 3सी के कई प्रावधानों को भी अदालत ने रोक दिया। इन प्रावधानों के तहत सरकारी अधिकारियों को संपत्ति को वक्फ या सरकारी जमीन घोषित करने और राजस्व अभिलेख बदलने का अधिकार दिया गया था। अदालत ने इसे सत्ता के विभाजन के सिद्धांत के खिलाफ करार दिया और कहा कि नागरिकों के अधिकारों का निर्धारण केवल न्यायपालिका ही कर सकती है। हालांकि, अदालत ने वक्फ के अनिवार्य रजिस्ट्रेशन से जुड़े प्रावधान में दखल देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह पहले से ही 1995 और 2013 के कानूनों में मौजूद है और नया नहीं है।
