रांची: झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र इस बार एक असाधारण घटनाक्रम के चलते बाधित हो गया। चार अगस्त को सत्र के दूसरे ही दिन जब सरकार को प्रथम अनुपूरक बजट पेश करना था, तभी राज्य के वरिष्ठ नेता, दिशोम गुरु और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के निधन की खबर आई। इस दुखद समाचार के बाद विधानसभा अध्यक्ष रबींद्र नाथ महतो ने कार्यवाही को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया। पहली बार आपातकालीन स्थिति में स्थगन झारखंड के संसदीय इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब किसी आपात स्थिति में मानसून सत्र को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया गया हो। हालांकि पूर्व में भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब सदन की कार्यवाही स्थगन के बाद एक्टेंडेड सेशन के रूप में फिर से बुलाई गई। एक बार सरना धर्म कोड को पारित कराने के लिए और दूसरी बार हेमंत सोरेन सरकार द्वारा विश्वास मत हासिल करने के लिए ऐसा किया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 208(1) के तहत विधानसभा अध्यक्ष को यह अधिकार प्राप्त है कि वे सरकार से परामर्श कर सत्र को दोबारा बुला सकते हैं, बशर्ते सत्र का सत्रावसान न हुआ हो। इसके लिए राज्यपाल या मंत्रिमंडल की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पिता के अंतिम संस्कार से जुड़ी तेरह दिन की विधियों में व्यस्त हैं, जो 17 अगस्त के आसपास पूरी होंगी। इसके बाद किसी भी दिन सत्र बुलाया जा सकता है। संभावना जताई जा रही है कि 17 अगस्त के बाद, एक या दो दिन का छोटा सत्र आयोजित कर अनुपूरक बजट पारित करा लिया जाएगा। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि शिबू सोरेन के निधन के चलते सभी दलों के बीच मौन सहमति बनी हुई है कि सरकार को वित्तीय कामकाज जारी रखने की अनुमति दी जाए। चूंकि झारखंड जैसे राज्य में वर्ष के मध्य में बजटीय आवश्यकताएं लगातार सामने आती हैं, इसलिए अनुपूरक बजट केवल राजनीतिक जरूरत नहीं, बल्कि संवैधानिक दायित्व भी है। विधानसभा अध्यक्ष और सरकार के बीच परामर्श के बाद सत्र की अगली तिथि तय की जाएगी। हालांकि तिथि अभी घोषित नहीं हुई है, लेकिन संकेत साफ हैं—17 अगस्त के बाद कभी भी विधानसभा सत्र दोबारा बुलाया जाएगा, ताकि सरकार राज्य की वित्तीय जरूरतें पूरी कर सके और विकास की गति को बरकरार रखा जा सके। बॉक्स अनुपूरक बजट से जुड़ी संवैधानिक बाध्यता सरकार के सामने प्रथम अनुपूरक बजट को पारित कराना एक संवैधानिक आवश्यकता है। वित्तीय वर्ष के बीच में जब नई योजनाएं बनती हैं या मौजूदा योजनाओं में अतिरिक्त राशि की जरूरत होती है, तब अनुपूरक बजट लाना पड़ता है। इसके बिना विकास योजनाओं, प्रशासनिक व्यय और कल्याणकारी कार्यक्रमों में बाधा आ सकती है। ऐसे में विधानसभा सत्र को जल्द दोबारा बुलाना सरकार की प्राथमिकता बन गई है।
