नई दिल्ली/ रांची: झारखंड के वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने शुक्रवार को नई दिल्ली स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आठ राज्यों के वित्त, वाणिज्य और राजस्व मंत्रियों की बैठक में सक्रिय भागीदारी की और जीएसटी दरों के सरलीकरण से जुड़ी चिंताओं को मुखरता से रखा। उन्होंने कहा कि यदि प्रस्तावित बदलाव लागू किए जाते हैं तो झारखंड को हर साल करीब दो हजार करोड़ रुपये का नुकसान होगा, जिसकी भरपाई केंद्र सरकार को करनी होगी।बैठक का एजेंडा आगामी 3 और 4 सितंबर को होने वाली जीएसटी काउंसिल की बैठक से पूर्व “जीएसटी रेट रेशनलाइजेशन” पर विमर्श था। इसमें झारखंड, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली, पंजाब, तेलंगाना, केरल और पश्चिम बंगाल के मंत्री शामिल हुए। सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि दरों में बदलाव तभी संभव है जब राज्यों को दीर्घकालिक क्षतिपूर्ति का आश्वासन दिया जाए।झारखंड के वित्त मंत्री ने बैठक में कहा कि छोटे और विनिर्माण आधारित राज्यों की वित्तीय स्थिति पहले ही सीमित है। ऐसे में बिना मुआवजे की व्यवस्था के जीएसटी दरों का सरलीकरण वित्तीय स्वायत्तता पर गहरा असर डालेगा। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि 12 और 28 प्रतिशत स्लैब खत्म करने का प्रस्ताव लागू होता है तो “सिन” और “लक्जरी” वस्तुओं पर उपकर लगाकर राज्यों को मुआवजा दिया जाए और कम से कम पांच वर्षों तक क्षतिपूर्ति की गारंटी दी जाए।वर्तमान में जीएसटी की दरें 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत के चार स्लैब में बंटी हुई हैं। केंद्र सरकार सरलीकरण की दिशा में दो स्लैब खत्म करने पर विचार कर रही है। हालांकि राज्यों ने साफ कहा कि इससे राजस्व पर गंभीर असर पड़ेगा। झारखंड के वित्त मंत्री ने दोहराया कि सुधार आवश्यक हैं लेकिन सहकारी संघवाद की भावना से समझौता नहीं होना चाहिए।बैठक के बाद आठों राज्यों ने संयुक्त ज्ञापन जीएसटी काउंसिल को सौंपने का निर्णय लिया, जिसमें राजस्व संरक्षण और क्षतिपूर्ति तंत्र सुनिश्चित करने की मांग की जाएगी। मंत्रियों ने कहा कि संतुलित दृष्टिकोण अपनाकर ही जीएसटी सुधार सफल हो पाएंगे।
