देवघर बस स्टैंड के बाघमारा शिफ्ट होने पर दुकानदारों और कर्मियों में रोष, रोजगार पर संकट की आशंका

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देवघर: शहर के हृदयस्थल में वर्षों से संचालित हो रहा देवघर बस स्टैंड अब बाघमारा शिफ्ट कर दिया गया है। प्रशासन द्वारा लिए गए इस निर्णय के बाद शहर के स्थानीय दुकानदारों, बस स्टैंड कर्मियों, कंडक्टरों, किरानियों और छोटे व्यापारियों में रोष और चिंता की लहर दौड़ गई है। नई जगह पर बस स्टैंड जाने से आम लोगों को तो परेशानी होगी ही, लेकिन सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ेगा जिनका रोजगार सीधे तौर पर पुराने बस स्टैंड से जुड़ा हुआ था।

बाघमारा स्थित नया बस स्टैंड पुराने स्टैंड से करीब 5 किलोमीटर की दूरी पर है। इस फैसले से एक तरफ जहां ट्रैफिक की समस्या के समाधान की उम्मीद जताई जा रही है, वहीं दूसरी ओर पुराने स्थान से जुड़े हजारों छोटे व्यवसायियों की आजीविका पर संकट मंडराने लगा है।

रोजगार छिनने की कगार पर” – दुकानदारों का दर्द

पुराने बस स्टैंड के आसपास वर्षों से भुजा, पकौड़ी, चाय-पान की दुकानें, स्टेशनरी, टिकट बुकिंग सेंटर और छोटी-मोटी रेडी चलाने वाले सैकड़ों परिवारों का पेट पलता था। अब जब पूरा बस स्टैंड ही बाघमारा शिफ्ट हो गया है, तो इन दुकानदारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है।

एक दुकानदार सह बस की किरानी, कुंदन कुमार ने केलांचल टीम के ब्यूरो हेड अतुल कुमार से बात करते हुए अपना दर्द साझा किया। उन्होंने कहा, “हमें बस स्टैंड के शिफ्ट होने से कोई आपत्ति नहीं है। हम प्रशासन के निर्णय का सम्मान करते हैं। भीड़भाड़ कम होगी, ट्रैफिक व्यवस्थित होगा। लेकिन हमें भी जीने का अधिकार है। हमारा रोजगार इस बस स्टैंड से जुड़ा था। हम प्रशासन से विनम्र आग्रह करते हैं कि कम से कम लोकल रूट की बसें पुराने स्टैंड से ही चलने दें, ताकि हम जैसे छोटे दुकानदारों की रोजी रोटी चलती रहे।”

लोकल रूट की बसों की मांग तेज

कुंदन कुमार की तरह ही कई अन्य लोगों की यही मांग है कि पाकुड़, गोड्डा, दुमका, मधुपुर जैसे नजदीकी क्षेत्रों की लोकल बसों का संचालन पुराने बस स्टैंड से जारी रखा जाए। इससे जहां यात्रियों को भी सहूलियत मिलेगी, वहीं रोज कमाने-खाने वाले मजदूर, कंडक्टर, ड्राइवर और दुकान संचालकों को भी राहत मिलेगी।

बाघमारा स्थान मुख्य शहर से दूर होने के कारण न केवल यात्रियों को आने-जाने में समय और खर्च का सामना करना पड़ेगा, बल्कि कई बार बुजुर्गों, महिलाओं और छात्रों के लिए यह दूरी भारी पड़ सकती है।

स्थानीय व्यापारियों में आक्रोश, पुनः दुकानें शिफ्ट करना मुश्किल

पुराने बस स्टैंड के आसपास जो दुकानदार वर्षों से अपनी दुकानें चला रहे थे, उनके लिए बाघमारा जाकर पुनः दुकान लगाना आसान नहीं है। एक दुकानदार ने कहा, “हमने यहां वर्षों से किराया देकर दुकान चलाई है। अब अचानक सब कुछ बर्बाद होता लग रहा है। नए स्थान पर जाने के लिए पैसे नहीं हैं, व्यवस्था नहीं है। वहां जगह भी कम है और ग्राहकों का भरोसा भी अभी नहीं बन पाया है।”

कई दुकानदारों ने इसे “जी का जंजाल” करार देते हुए कहा कि एक आम आदमी के लिए अपना ठेला, सामान, दुकान और ग्राहक सब कुछ नए स्थान पर शिफ्ट करना किसी पहाड़ पर चढ़ने जैसा है।

प्रशासनिक कदम की सराहना, पर मानवीय पहल की मांग

गौरतलब है कि देवघर प्रशासन ने ट्रैफिक दबाव और सुव्यवस्थित बस संचालन के लिए बाघमारा में नया बस टर्मिनल तैयार कराया है। यह स्थान अधिक स्थान और आधुनिक सुविधाओं से युक्त है, जिससे दूरस्थ रूटों की बसों को वहां से चलाना बेहतर माना जा रहा है।

लेकिन साथ ही प्रशासन से यह भी उम्मीद की जा रही है कि वह मानवता के नाते स्थानीय व्यापारियों और स्टैंड से जुड़े छोटे कर्मियों की परेशानियों पर भी ध्यान दे। यदि लोकल बसों का संचालन पुराने स्थान से कुछ हद तक जारी रखा जाता है, तो शहर की आत्मा और वहां की जीवंतता बनी रहेगी।

स्थानीय लोग भी हुए परेशान

सिर्फ दुकानदार और बस स्टैंड कर्मी ही नहीं, बल्कि आसपास के रहने वाले स्थानीय लोग भी इस फैसले से परेशान हैं। कई परिवारों का कहना है कि अब बस पकड़ने के लिए उन्हें ऑटो या टैक्सी से बाघमारा जाना पड़ेगा, जिससे न केवल किराया बढ़ेगा बल्कि समय की भी बर्बादी होगी। एक छात्रा ने कहा, “हम स्कूल के बाद बस से दुमका जाते थे। अब नया स्टैंड बहुत दूर है। हर दिन जाना मुश्किल हो जाएगा।”

सरकार और प्रशासन से उम्मीद

अब सबकी निगाहें सरकार और जिला प्रशासन पर टिकी हैं। लोग उम्मीद कर रहे हैं कि अधिकारियों को जमीन से जुड़े इन मुद्दों की गंभीरता का एहसास होगा और कोई समाधान अवश्य निकलेगा।

स्थानीय समाजसेवी संगठनों ने भी मांग उठाई है कि एक समिति गठित कर नए और पुराने बस स्टैंड की स्थिति की समीक्षा की जाए, ताकि दोनों स्थानों का संतुलित उपयोग हो सके। इससे यात्रियों, व्यवसायियों और प्रशासन – तीनों की संतुष्टि संभव हो सकेगी।

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Author: gaytri

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