बतरस : तेज प्रताप यादव कभी बुरे नहीं, बस चार दिन के कड़ियां ही उपजी है

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सच कहूँ तो मुझे तेज प्रताप यादव कभी बुरे नहीं लगे। तेजप्रताप एक सम्पन्न परिवार में जन्मे और पले बढ़े सीधे सादे व्यक्ति हैं जिनकी रुचि कला में है, अभिनय में है, बांसुरी में है… वे मासूम हैं, राजनीति के लिए नहीं बने। राजनीति में होने या बने रहने के लिए जिस कुटिलता की जरूरत होती है, वह तेजप्रताप में नहीं है।
तेजू भइया विशुद्ध धार्मिक व्यक्ति हैं। मन्दिर मन्दिर घूमते रहते हैं। भगवान श्रीकृष्ण में उनकी आस्था किसी से छिपी नहीं है। कभी कभी भगवान शिव या भगवान श्रीकृष्ण का गेटअप लेकर स्वांग करते भी दिख जाते हैं। एक बार राम मंदिर के सम्बंध में किसी पत्रकार ने पूछा तो उन्होंने डांटते हुए कहा था- “मन्दिर अयोध्या में नहीं बनेगा तो कहां बनेगा जी? मन्दिर जरूर बनना चाहिए…” विपक्ष का कोई प्रभावशाली व्यक्ति शायद ही कभी ऐसे बोल पाया हो। और शायद यही कारण है कि वे कभी अपनी पार्टी में भी फिट नहीं बैठ सके… उनका विरोध तो होता ही रहा है।
पार्टी लाइन पर बने रहने के लिए भले उन्होंने दर्जनों बार उल्टे पुल्टे बयान दिए हों, पर वह सब बनावटी ही होता है और लगता भी है। राजनीति में होने की अपनी मजबूरियां भी हैं। खैर…
तेज प्रताप का ऐश्वर्या से जो विवाह हुआ वह बड़े घरों के उन पारंपरिक विवाहों की तरह ही था जिसमें बच्चों की मर्जी नहीं पूछी जाती थी। जिसमें केवल और केवल हैसियत देखी जाती थी। दोनों बड़े राजनैतिक परिवार थे, सो रिश्ता जोड़ लिया गया। हालांकि वह रिश्ता तब भी बेमेल था। ऐश्वर्या नए दौर की उच्च शिक्षित लड़की थीं और अपने तेजू भइया सीधे सादे… वह तेज प्रताप के साथ ठीक नहीं हुआ था। ठीक तो ऐश्वर्या के साथ भी नहीं हुआ था, और इसी के कारण दोनों का ही जीवन परेशानियों से भर गया। बेहतर होता कि दोनों परिवार साथ बैठ कर इस गलती को सुधारने का प्रयास करते, पर यह भी नहीं हुआ। बात वही है कि राजनीति की अपनी मजबूरियां होती हैं…
अब परिदृश्य में ऐश्वर्या की जगह पर अनुष्का हैं। यदि चार दिन में उपजी कड़ियों को जोड़ कर देखें तो यह सच ही लगता है कि इनका सम्बंध रहा है और शायद है भी… यदि ऐसा है तो इस रिश्ते को बहुत पहले ही पारिवारिक स्वीकृति मिल जानी चाहिये थी, क्योंकि वे कोई अपराध तो नहीं ही कर रहे हैं। ऐश्वर्या के साथ तो गृहस्ती की गाड़ी पटरी पर आने की संभावना थी नहीं, तो क्यों न लड़के की ही बात सुन ली गयी? लड़की स्वजातीय भी है। पर बात फिर वहीं अटकती है कि राजनीति की अपनी दिक्कतें हैं…
तेजू को पार्टी से निकालना तो विशुद्ध राजनैतिक निर्णय है, पर उस लड़के के व्यक्तिगत जीवन का क्या? माता पिता को कुछ निर्णय बच्चों की गृहस्थी को ध्यान में रख कर भी लेने चाहिए…
कुल मिला कर तेजप्रताप जी के साथ ठीक तो नहीं ही हो रहा। बाकी देखते हैं। हमारी तो कोई सुनेगा नहीं।

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Author: kelanchaltimes

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