नागपुर: वो सिर्फ 19 साल की है। एक मुस्कान, जिसमें आत्मविश्वास है। आंखों में जिद… कुछ कर दिखाने की। नाम है – दिव्या देशमुख। नागपुर की गलियों से उठी ये लड़की अब दुनिया के शतरंज बोर्ड पर छाई हुई है। फिडे वूमेंस वर्ल्ड कप 2025 जीतकर दिव्या ने इतिहास रच दिया। भारत की पहली महिला बनीं, जिसने ये खिताब जीता। शतरंज में दिव्या की शुरुआत कैसे हुई? बहन बैडमिंटन खेलती थी। नेट ऊंचा था, लेकिन किस्मत ने दूसरी दिशा दिखाई। उसी बिल्डिंग में शतरंज की क्लास चल रही थी। छोटी-सी दिव्या को वहां बिठाया गया। तब पांच साल की उम्र थी। पिता डॉ. जितेंद्र देशमुख और मां डॉ. नम्रता देशमुख, दोनों डॉक्टर। शतरंज को सिर्फ खेल नहीं, करियर मान लिया। पिता खुद शौकिया खिलाड़ी थे। बेटी को सिखाया। फिर कोच राहुल जोशी और ग्रैंडमास्टर श्रीनाथ नारायणन से ट्रेनिंग शुरू हुई। जल्द ही यह बच्ची भारत की उम्मीद बन गई। 2012 में अंडर-7 नेशनल चैंपियनशिप। 2014 में डरबन में वर्ल्ड अंडर-10 गोल्ड। फिर 2017 में ब्राजील में अंडर-12 गोल्ड। 2021 में बनी वुमन इंटरनेशनल मास्टर। और 2022 में बनी भारत की चैंपियन। 2023 में टाटा स्टील इंडिया रैपिड की विनर बनीं। हारिका द्रोणावल्ली और कोनेरु हम्पी जैसी दिग्गजों को हराया। 2024 में वर्ल्ड जूनियर अंडर-20 गोल्ड और ओलंपियाड में दो गोल्ड मेडल जीते। बोर्ड-3 पर 9.5/11 का स्कोर। फिर आया 2025। फिडे वर्ल्ड कप में 15वीं सीड थीं। एक-एक कर हर चुनौती को पीछे छोड़ा। इरिना क्रुश, नीना बत्सियाशविली, हम्पी, द्रोणावल्ली सभी को हराया। सेमीफाइनल में चीन की पूर्व चैंपियन टैन झोंग्यी को शिकस्त दी। फाइनल में हम्पी के साथ रैपिड टाईब्रेक हुआ। दिव्या ने 1.5-0.5 से जीतकर खिताब अपने नाम किया। इस जीत ने उन्हें ग्रैंडमास्टर बनाया। साथ ही 2026 कैंडिडेट्स टूर्नामेंट में एंट्री दिलाई। दिव्या आज भी पढ़ाई से जुड़ी हैं। स्कूल की टॉपर रहीं। अब स्पोर्ट्स साइकोलॉजी और डेटा एनालिटिक्स के ऑनलाइन कोर्स कर रही हैं। शतरंज ही कमाई का जरिया है। कुल नेटवर्थ करीब 7-8 करोड़ रुपए। दिव्या की कहानी कहती है – उम्र नहीं, जुनून मायने रखता है। सपनों की कीमत सिर्फ वही समझ सकता है, जो उन्हें जीता है।
