तालझारी : प्रखंड के दुधकोल गांव में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन कथावाचिका साधवी पुजा ब्रज किशोरी ने शुकदेव के जन्म, राजा परीक्षित को मिले श्राप और अमर कथा का मार्मिक वर्णन किया। कथा श्रवण कर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भक्ति रस में डूब गए।
साध्वी पुजा ब्रज किशोरी ने शुकदेव के जन्म की कथा सुनाते हुए कहा कि शुकदेव अपनी माता के गर्भ में पूरे बारह वर्ष तक रहे। जब उनके पिता वेदव्यास ने उन्हें बाहर आने का आग्रह किया, तो शुकदेव ने पृथ्वी पर भगवान हरि की माया के प्रभाव का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि जब तक स्वयं भगवान श्रीहरि उन्हें आश्वस्त नहीं करेंगे, तब तक वह पृथ्वी पर नहीं आएंगे। तब वेदव्यासजी ने भगवान श्री हरि का आह्वान किया और भगवान के प्रकट होने पर शुकदेव को उनकी माया से अप्रभावित रहने का आशीर्वाद मिला, जिसके बाद उन्होंने जन्म लिया। कथा में आगे बताया गया कि जन्म के पश्चात शुकदेव माया से विरक्त होकर वन की ओर चले गए, और व्यासजी उनके पीछे दौड़े। मार्ग में वृक्षों ने शुकदेव की ओर से उत्तर दिया कि इस मरणशील संसार में कौन किसका पुत्र और कौन किसका पिता है। अंततः व्यासजी ने इन्हीं शुकदेव को भागवत का ज्ञान प्रदान किया।
कथावाचिका ने श्रोताओं को राग-द्वेष त्याग कर भगवान की भक्ति में ध्यान लगाने की प्रेरणा दी, जिसे मुक्ति प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रभु को पाने के लिए सच्चे मन से उनका स्मरण करना ही पर्याप्त है।
कथा के दौरान बड़ी संख्या में महिला-पुरुष श्रद्धालु और समिति के सदस्य व ग्रामीण उपस्थित थे।
