श्रीराम भारतीय राष्ट्रवाद के प्रतीक, उनके आदर्शों पर चलकर ही राष्ट्र का कल्याण संभव : प्रो. रंजय प्रताप सिंह

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मधेपुरा। ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा के तत्वावधान में बी.एन. मंडल विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग में भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (ICPR), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित “रामचरित मानस में राष्ट्रीय चेतना” विषयक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विद्वानों और प्राध्यापकों ने श्रीराम के आदर्शों, राष्ट्र के प्रति उनकी दृष्टि और रामचरित मानस में निहित राष्ट्रवाद की अवधारणाओं पर विस्तार से विमर्श किया।

“रामचरित मानस केवल ग्रंथ नहीं, राष्ट्र की आत्मा है” : प्रो. रंजय प्रताप सिंह

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. रंजय प्रताप सिंह, विभागाध्यक्ष दर्शनशास्त्र, डी.ए.वी. कॉलेज, कानपुर एवं संयोजक, विद्या परिषद्, छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर ने अपने प्रभावशाली वक्तव्य में कहा कि रामचरित मानस भारत की सांस्कृतिक चेतना का धुरी है। उन्होंने श्रीराम को भारतीय राष्ट्रवाद का आदर्श बताया और कहा, “श्रीराम मर्यादा, न्याय, त्याग और परोपकार की मूर्त अभिव्यक्ति हैं। उनके जीवन से हम राष्ट्रहित में व्यक्तिगत स्वार्थों का त्याग करना सीखते हैं।”

उन्होंने ‘राम’ शब्द का विश्लेषण करते हुए कहा, “रा का अर्थ है राष्ट्र और म का अर्थ है मंगल; अतः राम वह व्यक्तित्व हैं जो राष्ट्र का मंगल करते हैं। वे एक ऐसे राष्ट्रनायक हैं, जिन्होंने भारत को सांस्कृतिक सूत्र में बांधने का कार्य किया।”

श्रीराम का वनवास एक राष्ट्र-यात्रा था

प्रो. सिंह ने कहा कि श्रीराम ने युवराज पद का परित्याग कर वनवास को अपनाया, जो केवल एक पारिवारिक निर्णय नहीं बल्कि राष्ट्र को आत्मसात करने की जनयात्रा थी। उन्होंने अयोध्या से लेकर रामेश्वरम तक की पदयात्रा के माध्यम से जन-जीवन को जाना और सम्पूर्ण भारत को जोड़ा। यह उनका राष्ट्र को एकसूत्र में पिरोने का प्रयास था।

सामाजिक समरसता और आतंकवाद विरोध का आदर्श प्रस्तुत किया

प्रो. सिंह ने कहा कि श्रीराम ने अहिल्या उद्धार, निषादराज से मित्रता, शबरी के झूठे बेर खाने जैसी घटनाओं के माध्यम से सामाजिक समरसता की नींव रखी। साथ ही ताड़का, खर, दूषण, सुबाहु और अंततः रावण जैसे आतंकी प्रवृत्तियों का अंत कर समाज में भयमुक्त वातावरण की स्थापना की।

“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” : प्रो. ज्ञानंजय द्विवेदी

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति प्रो. (डॉ.) ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि रामचरित मानस में राष्ट्रनिर्माण के सभी आवश्यक तत्व मौजूद हैं। श्रीराम ने जन्मभूमि को स्वर्ग से महान बताया और इस भावना को आत्मसात कर ही सशक्त राष्ट्र की परिकल्पना की जा सकती है।

शिक्षा में शामिल हो रामचरित मानस : प्रो. कैलाश प्रसाद यादव

सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने रामचरित मानस को भारतीय चरित्र-निर्माण का आधार बताया और सुझाव दिया कि इस ग्रंथ को विद्यालयी पाठ्यक्रम का अनिवार्य भाग बनाया जाए।

“राम ने भारत को सूत्र में पिरोया” : प्रो. राजीव कुमार मल्लिक

मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. राजीव कुमार मल्लिक ने कहा कि श्रीराम ने भारत को एकता के सूत्र में बांधने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई। उनकी नीतियाँ आज के संदर्भ में भी अत्यंत प्रासंगिक हैं।

मूल्य आधारित जीवन की आवश्यकता : डॉ. मो. एहसान

उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ. मो. एहसान ने कहा कि रामचरित मानस केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है। आज आवश्यकता है कि हम उसके मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात करें।

अध्यक्षता, संचालन और सम्मान

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. देव प्रसाद मिश्र (विभागाध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग) ने की। संचालन डॉ. सुधांशु शेखर (असिस्टेंट प्रोफेसर, दर्शनशास्त्र विभाग, ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय) ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रत्यक्षा राज (असिस्टेंट प्रोफेसर, रमेश झा महिला महाविद्यालय, सहरसा) ने प्रस्तुत किया।

दीप प्रज्वलन एवं पुस्तक भेंट से हुआ कार्यक्रम का शुभारंभ

कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई। सभी अतिथियों को अंगवस्त्रम् व पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया गया। प्रो. रंजय प्रताप सिंह को “गांधी-विमर्श” एवं “सामाजिक न्याय : अंबेडकर-विचार और आधुनिक संदर्भ” पुस्तकें स्मृति-चिह्नस्वरूप भेंट की गईं।

उपस्थिति

इस संवाद में डॉ. कुमार ऋषभ, असिस्टेंट प्रोफेसर धीरेंद्र कुमार, शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, सुशील कुमार मिश्रा, शशिकांत कुमार, चंदन कुमार, नूतन कुमारी, राजीव कुमार, प्रकाश चंद्र कुमार, दिनेश कुमार यादव, शक्ति सागर, सुरेन्द्र कुमार सुमन, बरुण कुमार सहित बड़ी संख्या में शिक्षक, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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Author: gaytri

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