अररिया । मां और नवजात की सुरक्षा को लेकर अररिया जिला स्वास्थ्य विभाग ने गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ हाई रिस्क प्रेगनेंसी (एचआरपी) के मामलों पर फोकस बढ़ा दिया है। समय पर पहचान और वैज्ञानिक प्रबंधन से जच्चा-बच्चा की जान को खतरे से बचाने में अब उल्लेखनीय सफलता मिल रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार, गर्भवती महिलाओं में हर 100 में से लगभग 10 महिलाएं हाई रिस्क प्रेगनेंसी की श्रेणी में आती हैं। ऐसे मामलों में सामान्य प्रसव की तुलना में जटिलताएं अधिक होती हैं, जिससे मां और शिशु दोनों की जान खतरे में पड़ सकती है।
एचआरपी: मातृ-शिशु मृत्यु का एक बड़ा कारण
सदर अस्पताल के वरिष्ठ चिकित्सक एवं एनसीडीओ डॉ. राजेंद्र कुमार ने बताया कि कम उम्र में गर्भधारण, दो बच्चों के बीच कम अंतर, एनीमिया, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, पूर्व में सिजेरियन या अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हाई रिस्क प्रेगनेंसी की वजह बनती हैं। ऐसे मामलों में समय रहते पहचान और समुचित देखभाल बेहद जरूरी होती है।
डॉ. कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) जैसे कार्यक्रम एचआरपी मामलों की समय पर पहचान और ट्रैकिंग में मददगार साबित हो रहे हैं। इसके जरिए गांव स्तर पर गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच में जागरूकता बढ़ी है।
मार्च महीने में 233 हाई रिस्क मामले चिह्नित
जिला कार्यक्रम प्रबंधक (DPM) संतोष कुमार के अनुसार, मार्च 2025 में जिले भर से 233 हाई रिस्क प्रेगनेंसी के मामले चिह्नित किए गए, जिनमें से 177 महिलाओं का सुरक्षित प्रसव सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इनमें से 161 महिलाएं संस्थागत प्रसव से लाभान्वित हुईं, जिसमें अधिकतर सामान्य प्रसव ही रहे।
संतोष कुमार ने बताया कि 94 महिलाओं को नि:शुल्क एंबुलेंस सेवा के ज़रिए अस्पताल तक पहुंचाया गया, वहीं 130 प्रसव उपरांत माताओं को एंबुलेंस सेवा से उनके घर सुरक्षित छोड़ा गया।
सर्विलांस और ट्रैकिंग से बनी स्थिति पर पकड़
सिविल सर्जन डॉ. केके कश्यप ने बताया कि विभाग की प्राथमिकता एचआरपी मामलों की पहली तिमाही में ही पहचान करना और उचित प्रबंधन सुनिश्चित करना है। इसके लिए वीएचएसएनडी (VHSND), आशा कार्यकर्ताओं की सतत निगरानी, और गर्भवती महिलाओं की चार बार जांच (ANC Check-up) पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि आशा कार्यकर्ताओं और चिकित्सा स्टाफ के सहयोग से हाई रिस्क मामलों को समय पर ट्रैक कर बेहतर परिणाम हासिल किए जा रहे हैं।
अररिया जिले में समय रहते एचआरपी की पहचान और उसका समुचित प्रबंधन मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को नियंत्रित करने में एक बड़ी उपलब्धि साबित हो रहा है। यह पहल आने वाले समय में ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित मातृत्व की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।
