दिग्गज बसपा नेता सतीश चंद्र मिश्रा लोकसभा चुनाव 2024 से गायब हैं, जानिए राजनीति

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Veteran BSP leader Satish Chandra Mishra is missing from Lok Sabha elections 2024 Know politics

संसद की सियासत।
– फोटो : अमर उजाला

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कभी बसपा के बड़े रणनीतिकारों में शामिल रहे और बसपा के चाणक्य कहे जाने वाले सतीश चंद्र मिश्रा इस बार के लोकसभा चुनाव में तकरीबन नदारद से दिख रहे हैं। जबकि बसपा के 40 स्टार प्रचारकों की लिस्ट में सतीश चंद्र मिश्रा का नंबर तीसरे नंबर पर आता है। पहले चरण के लोकसभा चुनाव में महज कुछ दिन ही बाकी हैं। लेकिन बसपा के चाणक्य सतीश चंद्र मिश्रा बड़ी जनसभाओं और रैलियों में नजर ही नहीं आ रहे हैं। वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती के उत्तराधिकारी आकाश आनंद की लगातार रैलियां हो रही हैं। इन रैलियों में आकाश आनंद बसपा के नेताओं की पहले से एक विशेष प्रकार के ढर्रे वाले भाषणों से इतर जनता से मुखातिब हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में सतीश चंद्र मिश्रा की पुराने दौर की तरह रैली और जनसभा में मौजूदगी का न होना कई तरह की चर्चाओं को जन्म दे रही है।

उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में बसपा के प्रमुख राजनीतिकारों में शामिल रहने वाले सतीश चंद्र मिश्रा बीते कुछ दिनों से सियासत की सुर्खियों में हैं। हालांकि सुर्खियों में रहने की कोई खास वजह नहीं है। लेकिन जिस तरीके से वह बसपा के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल होने के बाद भी अभी तक उतनी सक्रियता के साथ मैदान में नहीं उतर सके हैं, जितने कि बीते लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उतरते थे। सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की भी हो रही हैं कि मायावती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने वाले सतीश मिश्रा की जगह इस बार मायावती के भतीजे और उनके उत्तराधिकारी आकाश आनंद ने ले ली है। स्टार प्रचारकों की सूची में कभी मायावती के बाद दूसरे नंबर पर आने वाले सतीश मिश्रा आकाश आनंद के चलते तीसरे नंबर पर खिसक गए हैं। 

राजनीतिक जानकार डॉ. डीपी शुक्ला कहते हैं कि आकाश आनंद की इस वक्त जितनी जनसभाएं और रैलियां की उत्तर प्रदेश के पहले चरण के चुनाव में हो रही हैं, उतनी प्रमुख रैलियों में कभी पिछले चुनाव में बसपा के चाणक्य और प्रमुख राजनीतिकार सतीश चंद्र मिश्रा भी हुआ करते थे। शुक्ल कहते हैं कि क्योंकि पहले चरण के चुनाव में अब महज कुछ दिन ही बाकी हैं। लेकिन बड़े स्तर पर सतीश चंद्र मिश्रा की रैलियां और जनसभाएं फिलहाल नहीं देखने को मिल रही हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दरअसल सतीश चंद्र मिश्रा मायावती के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सभी बड़ी चुनावी रैली और जनसभा में मौजूद रहते थे। इसके अलावा उत्तर प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के अलग-अलग हिस्सों में होने वाली चुनावी रैलियां में भी सतीश मिश्रा मायावती के साथ मौजूद रहते थे। क्योंकि मायावती ने खुद अभी उत्तर प्रदेश में चुनावी रैलियां की शुरुआत नहीं की है। इसलिए माना जा सकता है कि सतीश मिश्रा की भी रैलियां अभी सियासी तौर पर नहीं शुरू हुई हैं।

 

सियासी गलियारों में कहा यह तक जा रहा है कि सतीश मिश्रा को बसपा की ओर से लोकसभा का प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा हो रही थी। हालांकि अभी तक की घोषित सीटों में सतीश मिश्रा को कहीं से प्रत्याशी तो नहीं बनाया गया है। जबकि मायावती ने इस बार भी अपनी 2007 वाली सोशल इंजीनियरिंग का दांव बड़े स्तर पर लोकसभा चुनावो में चला है। 2007 की सोशल इंजीनियरिंग के दांव में सबसे बड़े सियासी इंजीनियर के तौर पर सतीश मिश्रा उभर कर सामने आए थे, जिसमें सवर्णों की भागीदारी मायावती की पार्टी में जबरदस्त तरीके से हुई थी। इस बार भी मायावती ने अभी तक अपनी जितनी सीटें घोषित की हैं, उसमें तकरीबन बीस फीसदी के करीब सवर्ण प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। इसी के चलते सतीश मिश्र को उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख सीट पर लोकसभा का प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा हुई थी। 

बसपा के बड़े रणनीतिकारों में शामिल और स्टार प्रचारकों में तीसरे नंबर वाले सतीश चंद सोशल मीडिया पर भी उतने सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। सतीश चंद्र मिश्रा के सोशल मीडिया अकाउंट ट्विटर (अब एक्स) पर 1 जनवरी से लेकर अब तक कोई भी रजनीतिक रैलियों और जनसभाओं से संबंधित कोई भी पोस्ट नहीं हुआ है। हालांकि इतने दिनों में सतीश चंद्र मिश्रा ने बसपा की जारी हुई लोकसभा प्रत्याशियों की सूची को अपने प्रदेश अध्यक्ष के ट्विटर हैंडल को रिपोस्ट जरूर किया है। इसके अलावा 15 मार्च को काशीराम की जयंती पर उनका पोस्ट था। 15 मार्च को ही सतीश चंद्र मिश्रा ने बसपा सुप्रीमो मयावती और उनके उत्तराधिकारी आकाश आनंद के ट्वीट को भी रिपोस्ट किया था। इसके अलावा सतीश मिश्रा के सोशल मीडिया अकाउंट पर मायावती की पोस्ट को रिपोस्ट गया है। हालांकि सतीश चंद्र मिश्रा के करीबियों का कहना है कि वह सोशल मीडिया की बजाय ग्राउंड पर ज्यादा सक्रिय रहते हैं। लेकिन पार्टी से ही जुड़े कुछ नेता दभी जुबान इस बात को स्वीकार करते हैं कि सतीश चंद्र मिश्रा अब न तो पुराने अंदाज में नजर आते हैं, और ना ही उनकी सक्रियता ग्राउंड पर उतनी दिखती है।

हालांकि उत्तर प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की जमकर हो रही हैं कि बसपा में बीते कुछ समय में सतीश चंद्र मिश्रा का कद घटा है। राज्यसभा में कार्यकाल के समापन के बाद चर्चा इस बात की भी हुई थी कि बसपा के नेता सतीश चंद्र मिश्रा भाजपा का दामन थाम सकते हैं। लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती ने सतीश चंद्र मिश्र को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश में दी थी। यह वही दौर था जब सतीश मिश्रा के करीबी रिश्तेदार नकुल दुबे ने बसपा का दामन छोड़कर कांग्रेस से रिश्ता जोड़ लिया था। उसे वक्त भी ऐसी कई अटकलें लगाई जा रही थीं कि सतीश चंद्र मिश्रा और बसपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है।

राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार प्रेम श्रीवास्तव कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मायावती ने सतीश मिश्रा को प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन को शुरू करने की जिम्मेदारी दी थी। जिसकी शुरुआत उन्होंने अयोध्या से तो की, लेकिन उसके बाद उत्तर प्रदेश में बसपा के जो परिणाम रहे उससे पार्टी का प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन और सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से कुछ हद तक मोह भंग होने लगा। हालांकि बसपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि मायावती के गुड बुक में बसपा के चाणक्य सतीश चंद्र मिश्रा हमेशा से शुरुआती पायदान पर ही रहे हैं। यह बात अलग है कि मायावती ने अपना उत्तराधिकारी आकाश आनंद को घोषित किया है, लेकिन पार्टी में अभी भी सतीश चंद्र मिश्रा की बात को अहमियत दी जाती है। 

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