पाकुड़: जिलेभर में रविवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी अक्षय एवं आंवला नवमी का पूजा अर्चना विधि-विधान के साथ कि गई। शहर के विभिन्न जगहों पर
पुरोहित राजीव पांडेय ने संविधान के साथ मंत्रोंच्चारण कर पूजा अर्चना की गईं । पूजा अर्चना में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया ।इस दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है और आंवले के वृक्ष की पूजा भी की जाती है। स्नान, दान, व्रत-पूजा का विधान रहता है।यह संतान प्रदान करने वाली ओर सुख समृद्धि को बढ़ाने वाली नवमी होती है।भारतीय सनातन धर्म में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं ने आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। इस वर्ष कार्तिक शुक्ल नवमी दिनांक 10 नवम्बर रविवार को ‘अक्षय नवमी’ तथा ‘आँवला नवमी’ है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं। अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है । आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व है।अक्षय नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का भी विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवला के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के पश्चात् भोजन करना चाहिए। भोजन में सुविधानुसार खीर , पूड़ी या मिष्ठान्न हो सकता है। इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा भी है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है। साथ ही ये त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। आंवले के रस के सेवन से त्वचा की चमक भी बढ़ती है। पूजन के बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटना चाहिए। तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा करें। और आँवले के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करने के बाद कपूर या घी के दीपक से आंवले के वृक्ष की आरती किया गया।
