नेमरा: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पैतृक गांव नेमरा में हैं। वे अपने पिता और झारखंड आंदोलन के महानायक दिशोम गुरु शिबू सोरेन के निधन के बाद संथाली परंपरा के अनुरूप चल रहे श्राद्ध कर्म का एक-एक चरण भावनात्मक संकल्प के साथ निभा रहे हैं।
गुरुवार को उन्होंने श्राद्ध के ‘तीन कर्म’ से जुड़ी विधियों का निर्वहन किया। इसके पहले बुधवार की शाम उन्होंने गांव के बुजुर्गों और परिजनों संग बैठकर आगे के कर्मकांड– तीन नहान, दस कर्म और अंत में होने वाले पिंडदान को लेकर चर्चा की थी।
पांच अगस्त को जब उन्होंने अपने पिता को मुखाग्नि दी, तब संथाली रिवाज के अनुसार उन्होंने वही वस्त्र धारण किया था, जिससे दिवंगत पिता का कफन बना था। तब से श्राद्ध संपन्न होने तक वह इसी वस्त्र में रहेंगे। वह इस दौरान न तो गांव की सीमा पार कर सकते हैं, न ही पुरखों के जमाने से चली आ रही परंपरा को सकते हैं। परंपरा कहती है कि मुखाग्नि देने वाला ‘मुखिया’ कहलाता है, और उसे सीमित दायरे में ही रहकर समस्त विधि-विधान संपन्न करना होता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन यही कर रहे हैं– एक बेटे, एक ‘मुखिया’ और संथाल परंपरा के संवाहक की भूमिका में।
इस बीच, राज्यपाल संतोष गंगवार भी गुरुवार को नेमरा पहुंचे। उन्होंने दिवंगत शिबू सोरेन की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित की और मुख्यमंत्री से मुलाकात की। राज्य का शासन फिलहाल दूर से चल रहा है– जरूरी निर्देश वे फोन पर दे रहे हैं। विभागों के वरिष्ठ अधिकारी आवश्यकतानुसार गांव पहुंचकर उनका मार्गदर्शन ले रहे हैं। लेकिन मुख्यमंत्री की दिनचर्या फिलहाल सिर्फ एक ही धुरी पर घूम रही है– अपने पिता के श्राद्ध कर्म की पूर्णता।
यह महज परंपरा नहीं, बल्कि एक बेटे का अपने पिता के प्रति वह आदर है, जो शब्दों से कहीं ज्यादा कर्म में झलकता है।
मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट भी साझा किया –”नेमरा की यह क्रांतिकारी और वीर भूमि, दादाजी की शहादत और बाबा के अथाह संघर्ष की गवाह है। यहां के जंगलों, नालों-नदियों और पहाड़ों ने क्रांति की हर गूंज को सुना है – हर कदम, हर बलिदान को संजोकर रखा है। नेमरा की इस क्रांतिकारी भूमि को शत-शत नमन करता हूँ। वीर शहीद सोना सोबरन मांझी अमर रहें! झारखण्ड राज्य निर्माता वीर दिशोम गुरु शिबू सोरेन अमर रहें!”
