पाकुड़ : हाटपाड़ा में भगवान शिव के रूपी बाबा भैरव की पूजा को लेकर पूजा पंडाल को कारीगर अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं। गुरुवार देर रात भगवान भैरव की पूजा हुई । भैरव देव की पूजा निशा काल में हुई । कालाष्टमी व्रत के दिन भगवान शिव के रूप भैरव की पूजा रात्रि के समय की गई, तंत्र साधना के देवता काल भैरव की पूजा रात में की गई इसलिए अष्टमी में प्रदोष व्यापनी तिथि का विशेष महत्व होता है। यह दिन तंत्र साधना के लिए उपयुक्त माना गया है। भैरव को दंड देने वाला देवता भी कहा जाता है इसलिए इनका शस्त्र दंड है। यह पूजा तंत्र-मंत्र दोनों तरह से प्रचलित है।
ऐसी मान्यता है कि बाबा भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव के रूप के प्रतीक भैरव की कृपा भोलेनाथ-मां पार्वती की पूजा करने से मिलती है। वही पाकुड़ के हाटपाड़ा में हटिया के अंदर बाबा भैरो की पूजा भी वर्षों से की जाती है, हाटपाड़ा निवासी बद्री प्रसाद तिवारी ने बताया कि भैरव की पूजा विगत 1952 से होती चली आ रही है। स्व. देवनारायण तिवारी व आसपास लोगों ने मिलकर पुजा की शुरुआत हुई थी। तभी भैरव का बैठा हुआ प्रतिमा की ऊंचाई पांच फुट हुआ करती थी। अभी ऊंचाई बढ़ाया गया है। तब से अब तक पुजा होती चली आ रही है। काली पुजा की रात ही भैरव की पूजा होती है। यही निमित भी यह पूजा संपन्न हुआ ।
