श्रीराम को धरती पर मर्यादा का संदेश देने के लिए भेजा गया था : कथावाचक रविशंकर ठाकुर

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महेशपुर : प्रखंड मुख्यालय स्थित श्री श्री 1008 बूढ़ा बाबा महेश्वरनाथ शिवमंदिर परिसर में रामनवमी अखाड़ा समिति की ओर से आयोजित नौ दिवसीय श्री श्री 108 संगीतमय रामकथा के चौथे दिन मंगलवार देर शाम को कथावाचक रविशंकर ठाकुर ने राम जन्म से संबंधित कथा का वाचन किया। कथावाचक ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम एक अवतारी पुरुष थे। उन्हें विष्णु का सातवां अवतार माना जाता है। श्रीराम को धरती पर मर्यादा का संदेश देने के लिए भेजा गया था। इसलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम के नाम से भी जाना जाता है। भले ही श्रीराम अवतारी पुरुष थे। लेकिन उन्होंने सांसारिक प्रक्रिया के तहत अपनी मां की कोख से जन्म लिया था। श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी पत्नी कौशल्या के पुत्र थे। दरअसल राजा दशरथ को पुत्र नहीं हो रहा था। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का फैसला लिया।

दशरथ ने कई महान ऋषियों, तपस्वियों और विद्वानों को यज्ञ का आमंत्रण भेजा। फिर गुरु वशिष्ठ और शृंग ऋषि के नेतृत्व में यज्ञ शुरू हुआ। यज्ञ में देश भर से कई महान तपस्वी पधारे। वैदिक मंत्रोच्चार से ये महान यज्ञ संपन्न हुआ। समापन के बाद राजा दशरथ ने सभी तपस्वियों और ब्राह्मणों को भरपूर दान देकर विदा किया। उन्होंने बताया कि राजा दशरथ ने यज्ञ का प्रसाद अपनी तीनों पत्नियों कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी को दिया। प्रसाद के फलस्वरूप रानी कौशल्या ने गर्भधारण किया और इस तरह चैत्र शुक्ल नवमी को श्रीराम जन्मे। कहते हैं कि शिशु का वर्ण नीला था, चेहरे पर तेज और अत्यंत आकर्षक था। जिस भी व्यक्ति ने उस शिशु को देखा मोहित हो गया। कहते हैं कि श्रीराम के जन्म के बाद देवताओं ने आसमान से पुष्प वर्षा की थी। अप्सराओं ने नृत्य किया। चारों ओर उल्लास था।

समय बीतने के साथ-साथ राम गुणवान होते गए। वे सभी विषयों में पारंगत हो गए। भगवान राम का जन्म जब धर्म की बहुत हानि होने लगी और पृथ्वी व्याकुल हो गई। तब गौ का रूप धारण कर जहां देवता मुनि थे वहां गई और अपना दुख सुनाया। तब सभी देवी देवता ब्रह्मा, विष्णु, शिव सहित सभी ने परब्रह्म राम की स्तुति की। तब आकाशवाणी हुई कि हे देवताओं, मुनि, सिद्ध लोगों तुम मत डरो मैं तुम्हारे हेतु मनुष्य अवतार करूंगा और अंश सहित मनुष्य अवतार सूर्यवंश में लूंगा। तब भगवान श्री राम का जन्म त्रेता युग में चैत्र मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि अभिजीत मुहूर्त पुनर्वसु नक्षत्र और तिथि योग दोपहर का समय हुआ था। इस अवसर पर कथावाचक रविशंकर ठाकुर, राजहंस झा, अशोक वर्मा मौजूद थे

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