पाकुड़ :- शहर के काली तल्ला मोहल्ले में इस वर्ष भी तांत्रिक विधि व पौराणिक बंगाली पद्धति से श्मशान काली पूजा संपन्न हो गई. पाकुड़ शहर ही नहीं बल्कि बिहार और पश्चिम बंगाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु काली तल्ला पहुंचे और मां श्मसान काली की विधिवत पूजा व अराधना की. मौके पर आयोजित मेले में भी लोगों की भारी भीड़ देखी गई ।
300 साल से ज़्यादा पुरानी है काली तल्ला श्मशान काली की तांत्रिक पूजा
काली तल्ला मां श्मशान काली की पूजा तीन सौ से भी ज़्यादा वर्षों से तांत्रिक विधि व बंगाली पद्धति से की जा रही है.
ऐसा मानना है की मां काली अमावस्या की रात्रि में आती हैं और दूसरे दिन सायं काल प्रस्थान कर जाती हैं. मां काली की पूजा राजा पृथ्वी चंद्र शाही के समय बांग्ला संवत 1222 से प्रारंभ हुई है. मां श्मशान काली की पूजा काली तल्ला से पूर्व में हिरणपुर प्रखंड के देवपुर गांव में हुआ करती थी. लेकिन जब से राजा पृथ्वी चंद्र शाही पाकुड़ आये और यहां पर राजबाड़ी की स्थापना की. तब से माता की पूजा पाकुड़ के राजा पाड़ा में होने लगी. लेकिन कालांतर में मां काली कालीतल्ला मोहल्ले में विराजमान है. उनकी पूजा-अर्चना बंगाली तांत्रिक विधि से की जाती है. मां की पूजा करने व मन्नत मांगने के लिए बिहार और बंगाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. अमावस्या के दिन बड़ी संख्या में मां की तंत्र विद्या के साधक भी यहां अपनी साधना सिद्ध करने पहुंचते हैं.
सूर्यास्त से पहले मां उठ जाती है पट से, विसर्जन में होता है हजारों की भीड़
मां शमशान काली की महिमा अपरंपार है, मां शमशान काली अमावस्या के समाप्त बाद सूर्यास्त से पहले अपने पट से उठ जाती है जिसके बाद हजारों की संख्या में माता के विसर्जन के लिए भी लोगो की भिंड उमर पड़ता है भीड़ इतना संख्या में होता है इस सड़कों में व्यक्ति नहीं गिना जा सकता, सभी लोग माता के विसर्जन के लिए हर्षो उल्लाह के साथ माता का जयकारा लगाकर माता को के साथ माता को कंधों में लेकर नगर भ्रमण करते हुए काली भाषण स्थित पोखर में माता का विसर्जन किया जाता है।
