नयी दिल्ली: बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था का आधार माने जाने वाला कपड़ा उद्योग इन दिनों भारी संकट से गुजर रहा है। बीते कुछ महीनों में कई फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, जिससे हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। राजनीतिक अस्थिरता, ऑटोमेशन, मजदूर आंदोलन और भारत से बिगड़ते व्यापारिक संबंध इस गिरावट के प्रमुख कारण बताए जा रहे हैं। वहीं, पाकिस्तान की ओर झुकाव भी बांग्लादेश को महंगा पड़ सकता है। सवाल यह उठता है कि क्या अर्थशास्त्री और नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस इस इंडस्ट्री को डूबने से बचा पाएंगे?
फैक्ट्रियां क्यों हो रही हैं बंद?
बांग्लादेश इंडस्ट्रियल पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले छह महीनों में चटगांव में 52 से अधिक कपड़ा कारखाने बंद हो चुके हैं। इसका मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता और विदेशी ऑर्डर में 25% की गिरावट है। इसके चलते हजारों मजदूर बेरोजगार हो गए हैं, जबकि 44 और फैक्ट्रियां वेतन व ईद बोनस देने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
क्या बड़े उद्योग निगल रहे छोटे कारखानों को?
बांग्लादेश गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (BGMEA) के अनुसार, चटगांव में पंजीकृत 611 कारखानों में से केवल 350 ही सक्रिय हैं। इनमें से 180 फैक्ट्रियां सीधे विदेशी ऑर्डर पर काम कर रही हैं, जबकि 170 अन्य सब-कॉन्ट्रैक्टर के तौर पर काम करती हैं। सब-कॉन्ट्रैक्टिंग मॉडल में छोटे उद्योग बड़े कारखानों पर निर्भर होते हैं, जिससे स्वतंत्र छोटे व्यवसाय टिक नहीं पा रहे हैं।
क्या भारत से व्यापारिक दूरी नुकसान पहुंचा रही है?
भारत लंबे समय से बांग्लादेश का महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार रहा है, खासकर कपड़ा उद्योग में। हाल के वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों में आई खटास के चलते बांग्लादेश को भारतीय कंपनियों से मिलने वाले ऑर्डर में कमी आई है। इसके उलट, पाकिस्तान के साथ बढ़ते व्यापारिक संबंधों का अब तक कोई ठोस आर्थिक लाभ नहीं दिखा है। व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि भारत से व्यापारिक दूरी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को और कमजोर कर सकती है।
ऑटोमेशन से बढ़ी बेरोजगारी
दुनियाभर में टेक्सटाइल सेक्टर तेजी से ऑटोमेशन की ओर बढ़ रहा है, जिससे उत्पादन तो बढ़ रहा है, लेकिन मानव श्रम की आवश्यकता घट रही है। बांग्लादेश में कपड़ा उद्योग में ऑटोमेशन बढ़ने से 30.58% नौकरियां खत्म हो चुकी हैं। खासकर कम पढ़े-लिखे और वरिष्ठ कर्मचारी नई तकनीकों के अनुरूप खुद को ढालने में सक्षम नहीं हो पा रहे, जिससे वे रोजगार खो रहे हैं।
मजदूर आंदोलन ने बढ़ाई मुश्किलें
मजदूरी बढ़ाने और कामकाज की बेहतर स्थिति की मांग को लेकर मजदूरों के विरोध प्रदर्शन भी संकट को बढ़ा रहे हैं। Business & Human Rights Resource Centre की रिपोर्ट के अनुसार, बीते महीनों में 183 से अधिक फैक्ट्रियां मजदूर आंदोलनों के चलते बंद हो चुकी हैं। समय पर वेतन न मिलने और अस्थिर कामकाज ने इस क्षेत्र में अनिश्चितता बढ़ा दी है।
क्या मोहम्मद यूनुस कोई समाधान निकाल पाएंगे?
प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद छोड़ने के बाद, मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बनी नई सरकार से उम्मीद थी कि वह इंडस्ट्री को स्थिर करेगी। हालांकि, उद्योग जगत का आरोप है कि अब तक सरकार ने ठोस नीतियां लागू नहीं की हैं। टेक्सटाइल बिजनेस के दिग्गज अनंत जलील का मानना है कि अगर सरकार ने जल्द राहत नहीं दी, तो यह संकट और गहरा सकता है।
वियतनाम और कंबोडिया से मिल रही चुनौती
बांग्लादेश की कपड़ा इंडस्ट्री को अब वियतनाम और कंबोडिया जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है। इन देशों ने अपने उद्योगों को तकनीकी रूप से अधिक सक्षम बनाया है, जिससे वे वैश्विक बाजार में मजबूत स्थिति में पहुंच गए हैं। बांग्लादेश को अपने उत्पादन और निर्यात को बनाए रखने के लिए नवाचार और तकनीकी उन्नति पर ध्यान देना होगा।
बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था पर संभावित असर
कपड़ा उद्योग के संकट में घिरने से बांग्लादेश की आर्थिक स्थिरता भी प्रभावित हो सकती है। निर्यात घटने से विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ेगा, जिससे महंगाई और बेरोजगारी बढ़ सकती है। खासकर महिला मजदूरों के लिए यह स्थिति गंभीर हो सकती है, क्योंकि इस सेक्टर में उनकी संख्या अधिक है।
आगे क्या होगा?
अब सवाल यह है कि क्या बांग्लादेश सरकार और उद्योग जगत इस संकट से निपटने के लिए कारगर कदम उठाएंगे? क्या भारत से रिश्ते सुधारने की पहल की जाएगी? या फिर यह उद्योग धीरे-धीरे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करता रहेगा? आने वाले दिनों में इस पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।
