झारखंड में सरहुल पर्व: आदिवासी संस्कृति और प्रकृति की पूजा का अद्वितीय पर्व

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Desk : आज झारखंड समेत विभिन्न आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय का प्रमुख प्रकृति पर्व ‘सरहुल’ धूमधाम से मनाया जा रहा है. यह पर्व हर साल चैत्र माह के तीसरे दिन मनाया जाता है और यह झारखंड के मुख्य त्योहारों में से एक है.

क्या है इस पर्व का अर्थ

सरहुल का अर्थ है “सखुआ फूल की क्रांति”, जिसमें ‘सर’ का मतलब सखुआ या साल का फूल और ‘हूल’ का मतलब क्रांति है. यह पर्व प्रकृति के पुनः जीवन में आने और नए पत्तों, फूलों के खिलने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है.

नदी, तालाब, वन और धरती की पूजा

इस दिन प्राकृतिक आराधना की जाती है, विशेष रूप से साल वृक्षों की पूजा की जाती है. पुजारी साल वृक्ष की शाखाओं से आदिदेव सींग बोंगा की पूजा करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. पूजा में नदी, तालाब, वन और धरती की भी पूजा की जाती है और उनके संरक्षण का संकल्प लिया जाता है.

मांदर की थाप पर नृत्य

सरहुल पर्व में लोकनृत्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसमें महिलाएं और पुरुष पारंपरिक वेशभूषा में मांदर की थाप पर नृत्य करते हैं. इस दिन शोभायात्रा भी निकाली जाती है, जो पवित्र स्थान सरना स्थल तक पहुंचती है.

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Author: kelanchaltimes

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