शांतिनिकेतन । शांति निकेतन, पश्चिम बंगाल स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय में आयोजित एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी सह कार्यशाला में मध्यकालीन मुस्लिम भक्त कवियों की कविता को भारतीय साझी संस्कृति का सशक्त वाहक बताया गया। उद्घाटन सत्र में विश्वभारती विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कुलपति प्रबीर कुमार घोष ने अपने उद्बोधन में कहा कि भक्ति काल के मुस्लिम संतों और कवियों ने धार्मिक समरसता और मानवता का संदेश दिया, और उन कवियों को जनमानस में सम्मान प्राप्त हुआ जिन्होंने जाति-धर्म के भेद को पार करते हुए प्रेम और सादगी का संदेश फैलाया। उन्होंने यह भी कहा कि यह कविता भारत की साझी संस्कृति की अमूल्य धरोहर है, जो हमें अपने संस्कार, परंपरा और समरसता को समझने में मदद करती है।
यह आयोजन हिंदी विभाग, विश्वभारती और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। कुलपति प्रबीर कुमार घोष ने भक्ति काल के मुस्लिम कवियों की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा, “भक्तिकाव्य ने न केवल भारत की विविधता को एकत्र किया बल्कि मानवता, समाजवाद और धार्मिक सहिष्णुता के मूल्य को भी बल प्रदान किया।”
कार्यक्रम में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के परियोजना संचालक प्रोफेसर रामेश्वर मिस्र ने भक्ति काल में सूफी और संतों की भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भक्ति के कुछ प्रमुख कवि इस्लाम धर्म के अनुयायी होते हुए भी भारतीय भूमि और उसकी आध्यात्मिकता से गहरे जुड़े थे। उनका साहित्य भारत की मिट्टी, संस्कृति और समाज की एकता से प्रेरित था।
सुदीप बसु ने बंगाल की धरती पर शेख फरीद जैसे महान कवियों के योगदान को बताते हुए कहा कि उन्होंने सूफी और वैष्णव परंपराओं को जोड़ने का कार्य किया, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक समन्वय को बल मिला। साथ ही, मृणाल कांतिमंडल ने बंगाल के प्रसिद्ध मुस्लिम कवियों लालन शाह, शेख फरीद, सैयद सुल्तान, और दौलत काजी के साहित्यिक योगदान को सराहा, जिन्होंने अपनी रचनाओं में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता पर विशेष ध्यान केंद्रित किया।
कार्यशाला के उद्घाटन भाषण में हिंदी विभागाध्यक्ष सुभाष चंद्र राय ने कहा, “भक्तिकाव्य के मिथक और काव्य के शाश्वत सत्य को पहचानने के लिए एक व्यक्ति की उपस्थिति पर्याप्त नहीं है, बल्कि एक सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। यह कार्यशाला उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो भविष्य में भी जारी रहनी चाहिए।”
संगोष्ठी के वैचारिक सत्र में हिंदी विश्वविद्यालय, हावड़ा के पूर्व कुलपति प्रोफेसर दामोदर मिश्र ने कहा, “भक्ति काल के मुस्लिम कवियों ने मानवता के मूल्यों को अपने साहित्य में संवेदनशीलता और सुंदरता से संजोया।” अरुण होता ने रसखान, कबीर और रहीम की रचनाओं के उदाहरणों के माध्यम से धार्मिक एकता का संदेश दिया। रूपा गुप्ता ने नजीर अकबराबादी और अन्य मुस्लिम कवियों के साहित्य में भक्ति, प्रेम और समाज सुधार की गहरी छाप को प्रस्तुत किया। वहीं, मानवेंद्र मुखोपाध्याय ने बंगाल के मुस्लिम कवियों के साहित्यिक योगदान और उनके सामाजिक और धार्मिक अवदान को प्रमुखता दी।
मुक्तेश्वर नाथ तिवारी ने कहा कि आज के सामाजिक संदर्भ में भक्तिकालीन मुस्लिम कवियों की कविताएं न केवल साहित्य में, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त करती हैं। उन्होंने बताया कि इन कवियों ने धार्मिक एकता, सांस्कृतिक समन्वय और मानवाधिकार की रक्षा के लिए अपने साहित्य का उपयोग किया।
इस संगोष्ठी में शकुंतला मिश्र, जगदीश भगत, मेरी हांसदा, श्रुति कुमुद, सुकेश लोहार, राहुल सिंह, और अर्जुन कुमार ने धन्यवाद ज्ञापन और सत्र संचालन का कार्य संभाला। इसके अलावा, ऋषि भूषण चौबे और शोध छात्रों निकीता कुमारी, आशुतोष, ममता कुमारी, अमन त्रिपाठी ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए और इस कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संगोष्ठी ने यह साबित किया कि मध्यकालीन मुस्लिम भक्त कवियों की रचनाएं न केवल साहित्यिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक समरसता के लिहाज से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। यह आयोजन भारत की साझी संस्कृति को नया दृष्टिकोण देने के साथ-साथ भक्ति और साहित्य के अद्वितीय संगम की ओर संकेत करता है।
