बिहार चुनाव नज़दीक हैं, और सियासी हलचल अब गांव की चौपालों तक पहुंच चुकी है. लेकिन इस बार तस्वीर थोड़ी अलग है. बात हो रही है संतोष कुमार तिवारी की — पूर्व भारतीय सेना के जवान, करगिल योद्धा और अब बिहपुर से संभावित प्रत्याशी.
गानोल गाँव में जब उन्होंने जनदर्शन किया, तो ये कोई औपचारिक रैली नहीं थी. न मंच था, न माइक — सिर्फ़ जनता और उनका प्रतिनिधि. लोगों की समस्याएं सुनी गईं, सुझाव लिए गए और हर आंख में एक उम्मीद दिखी — कि ये नेता पहले सैनिक रहा है, जो वर्दी में भी और अब समाज में भी देश के लिए खड़ा है.
तिवारी ने तेजस्वी यादव के विज़न की बात की, और ‘माई बहन मान योजना’ को महिलाओं के सशक्तिकरण का भविष्य बताया. यह सिर्फ़ भाषण नहीं, बल्कि एक ज़मीनी संवाद था — जहाँ नेता नहीं, एक बेटा, भाई और सिपाही सामने था.
बिहपुर की जनता इस बार चेहरों से ज़्यादा छवि देख रही है और संतोष तिवारी की छवि एक ऐसे नेता की बन रही है जो सिर्फ चुनावी मौसम में नहीं, हर मौसम में उनके बीच रहा है.
बिहपुर में हवा किस ओर है, कहना अभी जल्दबाज़ी होगी लेकिन एक बात साफ है, संतोष तिवारी ज़मीन से जुड़े हैं… और इस बार राजनीति भी वहीं से लिखी जा रही है.
