मधेपुरा। बिहार की उच्च शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम सामने आया है। विधान परिषद की शिक्षा समिति ने राज्य के विश्वविद्यालयों में वर्षों से कार्यरत अतिथि सहायक प्राध्यापकों की सेवा अवधि को 65 वर्ष तक करने की अनुशंसा की है। इस सिफारिश ने राज्यभर के प्राध्यापकों में उम्मीद, उत्साह और आत्मविश्वास को नया संबल दिया है।
भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा इकाई के बैनर तले बिहार राज्य अतिथि सहायक प्राध्यापक संघ की एक अहम बैठक आयोजित हुई, जिसकी अध्यक्षता इकाई संयोजक डॉ. राजीव जोशी ने की। बैठक में शिक्षा समिति के प्रति आभार व्यक्त करते हुए सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया गया कि यह निर्णय शिक्षा के हित में अत्यंत आवश्यक है और इसे शीघ्र लागू किया जाना चाहिए।
डॉ. राजीव जोशी ने कहा
“शिक्षक केवल पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाते, वे पीढ़ियाँ गढ़ते हैं। ऐसे में यदि उनके अनुभव और सेवा को 65 वर्ष तक विस्तार दिया जाए, तो यह शिक्षा की निरंतरता, गुणवत्ता और गरिमा — तीनों को सुरक्षित करता है।”
बैठक में दर्जनों वरिष्ठ अतिथि सहायक प्राध्यापकों ने भाग लिया और अपना समर्थन व्यक्त किया।
उपस्थिति में रहे — डॉ. ब्रजेश सिंह, डॉ. राजेश सिंह, डॉ. सुमन्त राव, डॉ. अजय कुमार, डॉ. भूषण कुमार, डॉ. मनोज कुमार, डॉ. श्वेता शरण, डॉ. राखी भारती, डॉ. ब्रह्मदेव यादव, डॉ. शत्रुंजय कुमार झा, डॉ. एम. एस. रहमान उर्फ बाबुल — सभी ने एकमत से कहा कि वर्षों की सेवा और निष्ठा को मान्यता मिलना जरूरी है।
संघ की ओर से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शिक्षा मंत्री सुनील कुमार और अपर मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ को एक हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन भेजा गया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि शिक्षा समिति की यह सिफारिश UGC के निर्धारित नियमों और अहर्ताओं के अनुरूप है।
संघ के अनुसार, बिहार भर में लगभग 2500 अतिथि सहायक प्राध्यापक वर्तमान में कार्यरत हैं, जो न केवल शिक्षण कार्य में बल्कि शोध, सांस्कृतिक गतिविधियों और प्रशासनिक जिम्मेदारियों में भी योगदान दे रहे हैं। ऐसे में सेवा विस्तार से न केवल इन शिक्षकों को सामाजिक और आर्थिक स्थायित्व मिलेगा, बल्कि विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की गंभीर कमी से भी राहत मिलेगी।
संघ के प्रदेश नेतृत्व मोहम्मद तहफीजुर रहमान एवं उनकी टीम को धन्यवाद देते हुए मधेपुरा इकाई ने कहा कि राज्यस्तरीय नेतृत्व ने लगातार सरकार, शिक्षा विभाग और विधान परिषद के समक्ष यह मुद्दा मजबूती से रखा है।
साथ ही शिक्षा समिति के अध्यक्ष डॉ. रामवचन राय और समिति के माननीय सदस्य — डॉ. संजीव सिंह, डॉ. नवल किशोर यादव, डॉ. संजय सिंह, डॉ. जीवन कुमार एवं डॉ. मदन मोहन झा को भी इस संवेदनशील एवं दूरदर्शी सिफारिश के लिए आभार प्रकट किया गया।
संघ का निष्कर्ष साफ है
“65 वर्ष तक सेवा की अनुमति देना, केवल प्राध्यापकों के लिए सम्मान नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा की निरंतरता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने का मार्ग है। यह निर्णय शिक्षा को स्थायित्व, गरिमा और दिशा देगा।”
