रावात/पटना। दक्षिण अफ्रीका के मोरक्को की राजधानी रावात में 5 और 6 अप्रैल को संपन्न हुए इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ टीचर्स यूनियन्स (IFTU) की 20वीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में भारत की शिक्षा व्यवस्था और विशेष रूप से बिहार की वित्त रहित शिक्षा नीति पर गहरी चिंता और चर्चा हुई। इस आयोजन में बिहार राज्य संबद्ध डिग्री महाविद्यालय शिक्षक शिक्षकेतर कर्मचारी महासंघ (फैक्टनेब) के मीडिया प्रभारी प्रो. अरुण गौतम के हवाले से बताया गया कि अखिल भारतीय विश्वविद्यालय और महाविद्यालय शिक्षक महासंघ (AIUCTO) के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. अरुण कुमार ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया।
प्रो. अरुण कुमार ने बिहार की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए कहा कि बिहार देश का एकमात्र राज्य है, जहां वित्त रहित शिक्षा नीति लागू है। इस नीति के कारण राज्य की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति अत्यंत खराब हो गई है और शिक्षाकर्मियों की स्थिति भी दयनीय हो गई है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह मुद्दा उठाया कि यदि बिहार में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाना है, तो वित्तीय संसाधनों में सुधार जरूरी है।
उन्होंने कहा कि भारत में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए व्यापक नीति परिवर्तन की आवश्यकता है, और बिहार की वित्त रहित शिक्षा नीति एक बड़ी चुनौती बन चुकी है, जिसका प्रभाव न केवल शिक्षाकर्मियों पर बल्कि छात्रों और समाज पर भी पड़ रहा है।
20वीं अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में प्रो. अरुण कुमार के साथ भुनेश्वर के प्रो. ए. के. मोहंती और चेन्नई के प्रो. गांधी राजन समेत भारत के दर्जनों शिक्षाविदों ने भाग लिया। इस कांग्रेस में विश्वभर से शिक्षाकर्मी और शैक्षिक विशेषज्ञ एकत्र हुए थे, जहां भारत की शिक्षा नीति, खासकर बिहार की स्थिति पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ।
कांग्रेस में शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों के अधिकारों के मुद्दे पर भी चर्चा की गई, जहां शिक्षकों की बदहाली और उनके वेतन तथा अन्य लाभों की स्थिति पर सवाल उठाए गए।
इस सम्मेलन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के शिक्षा संकट को उजागर किया और इस संकट से निपटने के लिए वैश्विक समुदाय से समर्थन की अपील की।
