देवघर : अप्रैल की तपती दोपहरी और रात की उमस ने देवघरवासियों को पहले ही बेहाल कर रखा है, ऊपर से बिजली विभाग की ‘आंखमिचौली’ ने जनता की नींद तक छीन ली है। कहते हैं मई-जून का डर होता है गर्मी को लेकर, लेकिन देवघर वालों के लिए अप्रैल ही आफत बनकर आया है। बिजली की इस लुका-छिपी ने जिले के हर मोहल्ले में नाराजगी का माहौल बना दिया है।
बीते एक सप्ताह से हालात और बिगड़ चुके हैं। पूरे जिले में औसतन 10 से 15 मेगावाट बिजली की अतिरिक्त जरूरत है, लेकिन उस पर ध्यान देने वाला कोई नहीं दिखता। रोज बैठकों की खानापूर्ति हो रही है, आदेश पर आदेश दिए जा रहे हैं लेकिन ज़मीन पर कुछ भी बदलता नहीं दिख रहा।
“रात भर लाइट नय छलए, इन्वर्टर बैठ गेलई!”
ये वाक्य अब देवघर में हर गली-मोहल्ले की आम जुबान बन चुका है। अगर आप किसी भी राह चलते व्यक्ति से ये पूछ लें, “रात में सोए थे क्या?” तो जवाब लगभग तय है — एक थकी हुई मुस्कान और उसके बाद चुभता हुआ जवाब, “धुरर! लाइट नय छलए, इन्वर्टर गइले बैठ गेलई, गर्मी में उ बाल-बच्चा भी रोते रहल!”
जनता त्रस्त, अधिकारी मस्त!
बिजली विभाग की इस लापरवाही से लोग बुरी तरह परेशान हैं, लेकिन संबंधित अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही। केलांचल की टीम जब-जब बिजली विभाग के कार्यालय पहुंचती है, तो पता चलता है—”साहब फील्ड में निकले हैं।” अब ये फील्ड कौन सा है, और वहां क्या हो रहा है, ये रहस्य ही बना हुआ है।
एक्शन में ‘DC’ लेकिन…
देवघर के उपायुक्त श्री अविनाश कुमार ने भी इस पर सख्त निर्देश जारी किए हैं कि बिजली आपूर्ति व्यवस्था को अतिशीघ्र दुरुस्त किया जाए। जनता को राहत मिलनी चाहिए। लेकिन कार्यपालक अभियंता साहब की भी अपनी मजबूरी है।
(अब जरा हास्य में सुनिए)
पता चला कि अभियंता साहब का इन्वर्टर खुद तीन दिन से खराब है, और जनरेटर का तेल खत्म। फाइलें पसीने से चिपक चुकी हैं, और AC सिर्फ शोभा की वस्तु बना है। साहब कहते हैं
“देखिए, जब बिजली है ही नहीं, तो हम क्या करें? मीटिंग में निर्णय ले लेते हैं, लेकिन निर्णय भी गर्मी से पसीज जाता है!”
साहब की दफ्तर में एक टेबल फैन है, जो खुद गर्म होकर कभी-कभी सुन्न हो जाता है। साहब का बयान —
“फैन भी हमसे नाराज़ है। कहता है, हमको मत घुमाइए, पहले जनता को लाइट दीजिए!”
‘बिजली’ विभाग नहीं, ‘बीजली’ विभाग बन चुका है।
जहाँ आम जनता के सब्र का बांध टूट रहा है, वहीं सोशल मीडिया पर देवघर बिजली विभाग को लेकर मीम्स की बाढ़ आ चुकी है। कोई पूछ रहा है —
“बिजली विभाग वाले कौन से ग्रह पर मीटिंग कर रहे हैं?”
तो कोई लिख रहा है —
“इन्वर्टर बैठा नहीं है, अब तो हम खुद ही बैठ चुके हैं!”
हॉस्पिटल से लेकर हॉटल तक हाहाकार
सिर्फ घरों में ही नहीं, अस्पतालों में भी बिजली संकट की मार पड़ रही है। छोटी नर्सिंग होम्स में जनरेटर महंगा पड़ रहा है। स्कूलों में पंखे ठप्प हैं, बच्चे पसीने में भीगकर पढ़ाई कर रहे हैं। होटल-रेस्तरां मालिक भी बिजली कटौती से परेशान हैं —
“ग्राहक आते हैं, गर्मी देखकर भाग जाते हैं।”
सरकारी विभाग खुद परेशान, लेकिन जुबान पर ताला
पानी की सप्लाई पर भी असर दिखने लगा है, क्योंकि मोटर पंप भी बिजली से चलते हैं। नगर निगम के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया,
“बिजली नहीं है तो सप्लाई कैसे हो? ऊपर से जनता गाली देती है, जैसे सब हमारे हाथ में है!”
अब जनता क्या करे?
अब सवाल यही है—जनता कब तक ये सब सहेगी? क्या यह नया सामान्य हो गया है कि हर गर्मी में बिजली जाएगी, और कोई जवाबदेही नहीं होगी?
देवघर के रहने वाले एक बुजुर्ग महोदय, रामजी यादव ने कहा— “हम तो बहुत सरकार देखले, लेकिन ई हाल तो अंग्रेज के टाइम में भी न रहल होएत।”
सरकार से सवाल:
- आखिर क्यों नहीं पूरी हो रही बिजली की जरूरत?
- किस आधार पर बिजली वितरण हो रहा है?
- क्या इस गर्मी में कोई रोडमैप है कि जनता को राहत मिलेगी?
*केलांचल का उद्देश्य है सच्चाई दिखाना, जनता की आवाज़ बनना। हम सवाल उठाते रहेंगे, जब तक जवाब नहीं मिलता।*
आखिर में, ये तो देवघर की जनता तय करेगी कि कब तक बिजली विभाग की ‘फील्ड मीटिंग’ में उनका सब्र जलता रहेगा।
*”गर्मी बढ़ती रही, लाइट गायब रही, साहब फील्ड में रहे — और जनता लाचार रही।”*
