पटना । बिहार के विश्वविद्यालयों में वर्षों से शिक्षण कार्य में लगे अतिथि शिक्षकों की उम्मीदों को नया संबल मिला है। नियमितिकरण और सेवा सुरक्षा की उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग अब अंतिम मोड़ पर पहुंच गई है। बिहार विधान परिषद की शिक्षा समिति ने उनकी मांगों पर मुहर लगाते हुए शिक्षा विभाग को सिफारिश भेज दी है। अब सबकी निगाहें बिहार सरकार के निर्णय पर टिक गई हैं।
2020-21 से लगातार समर्पण के साथ कार्यरत इन शिक्षकों ने हर मोर्चे पर अपने हक की लड़ाई लड़ी है—कभी सड़क पर, कभी सदनों में, तो कभी कलम के जरिये। अब यह संघर्ष निर्णायक मोड़ पर है।
“यह सिर्फ नियुक्ति की नहीं, पहचान और प्रतिष्ठा की लड़ाई है,”
यह कहना है बिहार राज्य विश्वविद्यालय अतिथि सहायक प्राध्यापक संघ के प्रांतीय संयोजक डॉ. सतीश कुमार दास का। उन्होंने कहा कि यह संघर्ष जितना लंबा रहा है, उतनी ही गहरी इसकी जड़ें हैं—अब यह आंदोलन केवल एक मांग नहीं, बल्कि एक जन-आवाज़ बन चुका है।
डॉ. दास ने संगठन की ओर से बिहार विधान परिषद के उपसभापति एवं शिक्षा समिति के अध्यक्ष प्रो. रामवचन राय तथा अन्य सदस्यों—डॉ. संजीव कुमार सिंह, डॉ. संजय कुमार सिंह, डॉ. नवल किशोर यादव, डॉ. सर्वेश कुमार, डॉ. मदन मोहन झा, जीवन कुमार—का आभार जताया, जिन्होंने शिक्षकों की पीड़ा को गंभीरता से सुना और उसे सदन तक पहुँचाया।
“हमारा संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक हर अतिथि शिक्षक को उसका न्याय न मिल जाए। यह कोई एहसान नहीं, हमारा संवैधानिक अधिकार है।”
डॉ. दास ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विकास और रोजगार केंद्रित सरकार से पूर्ण विश्वास है कि इस न्यायपूर्ण मांग पर सहानुभूतिपूर्वक निर्णय लिया जाएगा।
संघ की ओर से सभी शिक्षकों से अपील की गई है कि वे एकजुटता, धैर्य और उम्मीद के साथ अंतिम चरण तक संघर्ष में बने रहें।
“संघर्ष हमारा धर्म है, और लक्ष्य हमारा संकल्प। अब कोई पीछे नहीं हटेगा।”
