अररिया: हिन्दी साहित्य को वैश्विक पहचान दिलाने वाले महान आंचलिक साहित्यकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की पुण्यतिथि के अवसर पर शिवपुरी में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। यह आयोजन वरिष्ठ राजद नेता एवं पूर्व लोक अभियोजक के.एन. विश्वास के आवास “दीर्घतपा” परिसर में सम्पन्न हुआ, जहां रेणु जी के तैलचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।
कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने उन्हें साहित्य, समाज और राजनीति में उनके अतुलनीय योगदान को याद करते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला।
इस अवसर पर राजद युवा नेता सह प्रदेश उपाध्यक्ष मंडल अविनाश आनंद, नगर पार्षद दीपा आनंद, अधिवक्ता विजेंद्र कुमार, समाजसेवी संजीत मंडल, रमेश कुमार, परमेश यादव, कुमार मंगलम, राकेश झा, ज्ञानप्रकाश, मृत्युंजय देव, सुरेंद्र मंडल, धीरेंद्र कुमार सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी और जनप्रतिनिधि उपस्थित थे।
रेणु की लेखनी, भारत की आत्मा की आवाज़ थी’ — के.एन. विश्वास
इस अवसर पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए के.एन. विश्वास ने कहा, “मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैं रेणु जी के निकट रहा और उनके साथ कई सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में भाग लिया। वे केवल साहित्यकार नहीं थे, बल्कि एक क्रांतिकारी विचारधारा के वाहक थे, जिन्होंने अपनी लेखनी से भारत की मिट्टी की सोंधी सुगंध को विश्व मंच तक पहुँचाया।”
रेणु जी की साहित्यिक यात्रा का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि उनकी पहली और सबसे प्रसिद्ध कृति ‘मैला आँचल’ (1954) ने हिंदी उपन्यास साहित्य में आंचलिकता की नई धारा को जन्म दिया। उनके उपन्यासों और कहानियों में बिहार के ग्रामीण जीवन, लोक-संस्कृति, जनजीवन और संघर्षों का अत्यंत जीवंत चित्रण मिलता है।
स्वतंत्रता संग्राम से लेकर नेपाली क्रांति तक रहे सक्रिय
रेणु केवल कलम के योद्धा नहीं थे, वे एक सच्चे सेनानी भी थे। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। 1950 में नेपाली राणा शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति के सूत्रधार बने। उनकी राजनीतिक सक्रियता उन्हें सोशलिस्ट पार्टी से जोड़ती है, जहाँ से उन्होंने गरीब, शोषित और पीड़ित जनों के लिए सतत संघर्ष किया।
कथा से सिनेमा तक: ‘तीसरी कसम’ की अमर छाप
फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ (राज कपूर, वहीदा रहमान) भारतीय सिनेमा की क्लासिक कृतियों में गिनी जाती है। यह फिल्म उनकी कथा शैली, भावप्रवणता और यथार्थ चित्रण की श्रेष्ठता को परदे पर साकार करती है। फिल्म को राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त हुए।
भारत की आंचलिक आत्मा का स्वर
रेणु की लेखनी सिर्फ साहित्य नहीं, वह भारत के गाँवों की आत्मा का दस्तावेज है। उनके शब्दों में लोकगीतों की मिठास, खेतों की सुगंध, और जनसंघर्षों की गूंज सुनाई देती है। वे आजीवन दमन और विषमता के विरुद्ध लड़ते रहे। उनकी कृतियाँ आज भी सामाजिक चेतना, राजनीतिक सजगता और सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं।
कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ केवल लेखक नहीं थे, वे विचार थे, आंदोलन थे, और भारत की मिट्टी से उपजे सृजनधर्मी युगद्रष्टा थे। उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि उनके विचारों को आत्मसात करने का अवसर है।
