नई दिल्ली, वाशिंगटन : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल, 2025 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए चीन, भारत, यूरोपियन यूनियन (EU), जापान और एशिया के कई अन्य देशों पर भारी आयात शुल्क (टैरिफ) लगाने की घोषणा की। इस कदम ने वैश्विक व्यापार युद्ध (ग्लोबल ट्रेड वॉर) की शुरुआत कर दी है, जिसके दूरगामी परिणाम होने की आशंका है। ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक चार्ट प्रदर्शित करते हुए कहा, “पिछले 50 सालों से अमेरिका को लूटा गया है, अब यह रुकना चाहिए। हम अपने किसानों, कारखानों और नौकरियों को बचाएंगे।” उनके इस फैसले से जहां अमेरिकी उद्योगों को संरक्षण मिलने की उम्मीद है, वहीं आलोचकों का कहना है कि इससे महंगाई बढ़ेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
ट्रंप का तर्क: अमेरिका को “लूट” से बचाना
ट्रंप ने अपने भाषण में दावा किया कि कई देश अमेरिका के साथ व्यापार में “अनुचित” व्यवहार करते हैं। उन्होंने कनाडा का उदाहरण देते हुए कहा, “कनाडा हमारे डेयरी उत्पादों पर 300% टैरिफ लगाता है, यह अन्याय है।” उनका मानना है कि ये रेसिप्रोकल टैरिफ (प्रतिशोधी शुल्क) अमेरिकी कंपनियों को फायदा पहुंचाएंगे और नौकरियां वापस लाएंगे। ट्रंप ने इसे “अमेरिका फर्स्ट” नीति का हिस्सा बताया, जिसके तहत सभी आयात पर 10% बेसलाइन टैरिफ लागू होगा, जबकि कुछ देशों पर 49% तक की ऊंची दरें होंगी। ये टैरिफ 5 अप्रैल से लागू होंगे, और रेसिप्रोकल दरें 9 अप्रैल से प्रभावी होंगी।
किस देश पर कितना टैरिफ?
ट्रंप प्रशासन ने 60 से अधिक देशों के लिए विशिष्ट रेसिप्रोकल टैरिफ दरें तय की हैं। यहाँ प्रमुख देशों की सूची दी गई है:
- चीन: 34%
- यूरोपीय संघ: 20%
- भारत: 26%
- वियतनाम: 46%
- जापान: 24%
- कंबोडिया: 49%
- यूनाइटेड किंगडम: 10%
- दक्षिण अफ्रीका: 30%
- ब्राज़ील: 10%
- श्रीलंका: 44%
- पाकिस्तान: 29%
इन दरों को ट्रंप ने “डिस्काउंटेड रेसिप्रोकल” करार दिया, यानी ये उन टैरिफ से कम हैं जो ये देश अमेरिकी सामानों पर लगाते हैं। उदाहरण के लिए, भारत अमेरिकी उत्पादों पर औसतन 17% टैरिफ लगाता है, जबकि ट्रंप ने भारत पर 26% टैरिफ तय किया है।
वैश्विक प्रभाव: महंगाई और जवाबी कार्रवाई की आशंका
आलोचकों का कहना है कि ये टैरिफ अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए कारों, कपड़ों, इलेक्ट्रॉनिक्स और रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें बढ़ा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने चेतावनी दी है कि इससे वैश्विक विकास दर में कमी आ सकती है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने इसे “विश्व अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा झटका” बताया और कहा कि EU जवाबी टैरिफ लगाने को तैयार है। चीन ने भी तत्काल सभी टैरिफ हटाने की मांग की है और प्रतिशोध की धमकी दी है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि ये टैरिफ अमेरिका में 2025 में मुद्रास्फीति को सामान्य से अधिक बढ़ा सकते हैं। साथ ही, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित होंगी, खासकर ऑटोमोबाइल और स्टील जैसे उद्योगों में।
भारत पर प्रभाव: स्टील और एल्युमिनियम निर्यात को झटका
भारत के लिए ये टैरिफ एक मिश्रित चुनौती लेकर आए हैं। भारत का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार 2024 में 190 बिलियन डॉलर था, जिसमें स्टील, एल्युमिनियम, कपड़ा और फार्मास्यूटिकल्स प्रमुख निर्यात हैं। 26% टैरिफ से भारतीय स्टील और एल्युमिनियम निर्यातकों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि उनकी लागत बढ़ जाएगी और अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल होगा।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस प्रभाव को कम कर सकता है। SBI रिसर्च के अनुसार, भारत के निर्यात पर असर 3-3.5% तक सीमित रह सकता है, क्योंकि भारत ने हाल के वर्षों में अपने निर्यात बाजारों में विविधता लाई है। यूरोप, मध्य पूर्व और अन्य एशियाई देशों के साथ नए व्यापार मार्ग इस नुकसान को संतुलित कर सकते हैं। इसके अलावा, फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर्स जैसे कुछ क्षेत्रों को टैरिफ से छूट मिलने की संभावना है, जो भारत के लिए राहत की बात है।
ट्रंप का मकसद और संदेह
ट्रंप का दावा है कि ये टैरिफ अमेरिकी कंपनियों को बढ़ावा देंगे और कारखाने अमेरिका वापस लाएंगे। उनका कहना है कि इससे व्यापार घाटा (2024 में 918.4 बिलियन डॉलर) कम होगा। लेकिन विशेषज्ञ संशय में हैं। कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि कंपनियां अमेरिका में उत्पादन शुरू करने के बजाय अन्य सस्ते बाजारों (जैसे वियतनाम या मेक्सिको) की ओर रुख कर सकती हैं। साथ ही, पिछले टैरिफ अनुभव (2018-2020) से पता चलता है कि नौकरियां वापस लाने का दावा अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकता है।
आगे क्या?
भारत सरकार ने इस घोषणा पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है। वाणिज्य मंत्रालय विभिन्न मॉडलों पर काम कर रहा है ताकि टैरिफ के असर को कम किया जा सके। भारत और अमेरिका के बीच सितंबर-अक्टूबर 2025 तक एक व्यापार समझौते की उम्मीद है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक 500 बिलियन डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है। तब तक, भारत जवाबी टैरिफ या कूटनीतिक बातचीत के जरिए इस चुनौती से निपट सकता है।
ट्रंप के इस कदम ने वैश्विक व्यापार को एक अनिश्चित दौर में धकेल दिया है। जहां अमेरिका अपनी आर्थिक संप्रभुता को मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारत जैसे देशों को अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। क्या यह “अमेरिका को फिर से धनी बनाने” का रास्ता है या वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक नया संकट? इसका जवाब आने वाले महीनों में साफ होगा।
