मुंबई: मुम्बई की 16 वर्षीय अनामता अहमद की आंखों में इस बार रक्षाबंधन का एक अलग ही चमक था। राखी के दिन वो किसी साधारण बहन की तरह अपने भाई की कलाई पर धागा नहीं बांध रही थीं—वो उस हाथ से राखी बांध रही थीं, जो कभी रिया का था। रिया, जो अब इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी देह से मिला यह अनमोल उपहार अनामता की ज़िंदगी का सहारा बन गया है। कहानी की शुरुआत सितंबर 2024 से होती है, जब गुजरात के वलसाड में 9 साल की रिया ब्रेन डेड हो गईं। ग़म से टूटे परिवार ने डोनेट लाइफ एनजीओ की मदद से रिया के अंगदान का निर्णय लिया। इसी निर्णय के तहत रिया का दाहिना हाथ मुंबई की रहने वाली अनामता को दिया गया। यह भारत में कंधे के स्तर पर हुई सबसे कम उम्र की हाथ प्रत्यारोपण सर्जरी थी। अनामता के लिए यह महज एक ऑपरेशन नहीं, बल्कि नई ज़िंदगी का दरवाज़ा था। 2022 में एक हादसे में उनका दाहिना हाथ हाई-टेंशन तार से कट गया था। बायां हाथ भी महज़ 20 ताकत के साथ काम करता था। मगर हिम्मत नहीं टूटी। यूट्यूब से एक्सरसाइज़ सीखकर और दिन-रात अभ्यास कर उन्होंने बाएं हाथ को काबिल बनाया। अवसाद के दौर में भी 2023 में दसवीं बोर्ड में 92% अंक लाकर सबको हैरान कर दिया। हाथ मिलने के बाद अनामता फिर से दोनों हाथों से ज़िंदगी पकड़ सकीं। आज वह मुंबई के मिथिबाई कॉलेज में 12वीं की पढ़ाई कर रही हैं और भविष्य के सपनों को रंग दे रही हैं। इस रक्षाबंधन पर डोनेट लाइफ एनजीओ ने एक भावनात्मक योजना बनाई—अनामता को वलसाड बुलाया गया, पर रिया के भाई शिवम को इस सरप्राइज़ की भनक तक नहीं थी। राखी से एक दिन पहले जब अनामता अपने माता-पिता के साथ शिवम के घर पहुंचीं, तो पिता बॉबी मिस्त्री के चेहरे पर अविश्वास और खुशी का मिला-जुला भाव था। राखी बांधते हुए शिवम की कलाई को थामे अनामता के हाथ को बॉबी ने उलट-पलट कर चूमा—जैसे रिया को आखिरी बार छू रहे हों। उनकी आंखों में आंसू थे, पर होंठों पर संतोष की मुस्कान। “ऐसा लगा जैसे हमारी रिया लौट आई हो,” उन्होंने कहा। अनामता ने भी वादा किया कि हर रक्षाबंधन पर वो यहां आएंगी। बदले में शिवम ने ब्रेसलेट देकर इस रिश्ते को हमेशा के लिए पक्का कर दिया। यह सिर्फ राखी का बंधन नहीं था, बल्कि जीवन, दान और प्रेम की डोर थी—जिसने दो परिवारों को खून से नहीं, बल्कि दिल से भाई-बहन बना दिया।
