भाषा के बहाने घुसपैठियों की गिनती पर गर्माई असम की सियासत

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गुआहाटी : असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं को पकड़वा कर उन्हें उनके देश में वापस तो धकेल ही रहे हैं साथ ही अतिक्रमणकारियों से सरकारी जमीन को भी तेजी से मुक्त करवा रहे हैं। साथ ही वह असम की संस्कृति, भाषा और पुरातन परम्पराओं को आगे बढ़ाने और उनके संरक्षण की दिशा में भी कदम उठा रहे हैं। इसके अलावा, अब सरमा ने यह भी ऐलान कर दिया है कि “जनगणना में मातृभाषा के रूप में बंगाली लिखना राज्य में विदेशी नागरिकों की संख्या को दर्शाएगा”। उनके इस बयान ने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर तीखी बहस को जन्म दिया है। हम आपको बता दें कि मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी ऑल बीटीसी माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन (ABMSU) के नेता मैइनुद्दीन अली की उस धमकी के जवाब में आई जिसमें उन्होंने कहा था कि बंगाली भाषी मुस्लिम अब जनगणना में असमिया को मातृभाषा के रूप में नहीं लिखेंगे। देखा जाये तो यह मुद्दा केवल भाषा का नहीं है; यह पहचान, नागरिकता, राजनीतिक एजेंडा और सामाजिक विभाजन का जटिल मिश्रण है। दरअसल, असम जैसे बहुभाषी और बहुजातीय राज्य में भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक पहचान का आधार भी है। मुख्यमंत्री सरमा के बयान से यह साफ होता है कि राज्य सरकार भाषा को एक उपकरण के रूप में देख रही है जिससे ‘विदेशी’ या ‘घुसपैठियों’ की पहचान की जा सके। जबकि ABMSU का तर्क है कि भाषा का चुनाव लोगों की अपनी पहचान का अभिव्यक्ति है, न कि किसी विशेष राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा।

असम में NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) के बाद से ही यह धारणा बनी है कि बंगाली भाषी मुस्लिम बाहरी हैं, विशेषकर बांग्लादेश से आए लोग। हम आपको यह भी बता दें कि धुबरी जिले में हाल ही में 3,500 बीघा ज़मीन पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई ABMSU के विरोध का मूल कारण है। इस ज़मीन पर अदाणी समूह के 3,400 मेगावाट थर्मल पावर प्लांट का प्रस्ताव है। ABMSU और स्थानीय लोगों का आरोप है कि उनके पारंपरिक आवास और आजीविका को ताक पर रखकर कॉर्पोरेट हितों के लिए जबरन विस्थापन किया जा रहा है। जबकि सरकार इसे ‘अतिक्रमण हटाना’ और ‘विकास’ का नाम दे रही है।

इस बीच, मैइनुद्दीन अली के बयान पर सभी दलों ने विरोध जताया है और उनकी गिरफ्तारी की मांग की गई है। उन पर गुवाहाटी के दिसपुर थाने में एफआईआर भी दर्ज की गई है। यह दर्शाता है कि असम में भाषा और पहचान से जुड़ा कोई भी बयान कितना संवेदनशील है। देखा जाये तो भाषा के नाम पर समुदायों को विभाजित करने की प्रक्रिया से सामाजिक सौहार्द को गहरी चोट पहुँच सकती है। यह भी समझना होगा कि यदि लोग भय या दबाव में भाषा का चयन करेंगे, तो जनगणना के आंकड़े पक्षपातपूर्ण और असंतुलित होंगे।

हम आपको यह भी बता दें कि असम में अतिक्रमण रोधी अभियान जारी रहने पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने कहा है कि पिछले चार वर्षों में राज्य भर में 25,000 एकड़ से अधिक भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है। हालांकि, कांग्रेस ने अतिक्रमण रोधी अभियान की आलोचना करते हुए वादा किया है कि यदि विपक्षी पार्टी राज्य में सत्ता में आती है तो भारतीय जनता पार्टी शासन के दौरान भूमि से बेदखल किए गए सभी भारतीय नागरिकों को उचित मुआवजा दिया जाएगा। सरमा ने कहा कि वह अगले सप्ताह एक और प्रेस वार्ता करेंगे और मई 2021 में मुख्यमंत्री बनने के बाद से अतिक्रमण रोधी अभियान से संबंधित सभी आंकड़े प्रस्तुत करेंगे। उधर, धुबरी के कांग्रेस सांसद रकीबुल हुसैन ने कहा कि यदि राज्य में उनकी पार्टी सत्ता में आई तो वह भाजपा सरकार के तहत चलाए गए अभियानों में बेदखल किए गए सभी भारतीय नागरिकों को मुआवजा देगी।

हम आपको यह भी बता दें कि असम के मुख्यमंत्री ने दावा किया है कि स्वदेशी (मूल) धार्मिक आस्थाओं को धर्मांतरण समेत विभिन्न कारकों से नुकसान पहुंचा है। सरमा ने तामुलपुर के गुरमौ में एक नवनिर्मित बाथौ मंदिर का उद्घाटन करने के बाद ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘आपमें से कितने लोगों ने असम के बाथौ धर्म के बारे में सुना है? हमारे प्राचीन स्वदेशी धर्मों और आस्थाओं को कई कारणों से बहुत नुकसान हुआ है- उनमें से एक धर्मांतरण है।’’ उन्होंने राज्य के बोडो समुदाय की प्राचीन आस्था को मान्यता देते हुए दिसपुर में बाथौ थानसाली के निर्माण की भी घोषणा की।

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Author: kelanchaltimes

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